साध्वी: श्रावक-श्राविका तीन प्रकार के होते हैं। एक हैं भदैया, जो केवल पर्युषण या भादवा के महीने में नियम पालन करते हैं। दूसरे हैं कदैया, जो पूरे चातुर्मास तक धर्मपालन में जुटे रहते हैं। तीसरे हैं सदैया, जो ताउम्र नियमों को अपनाते हैं। इनमें सदैया सबसे श्रेष्ठ माने जाते हैं।
साध्वी: मोबाइल और टीवी का अत्यधिक उपयोग युवाओं को भटका रहा है। वे बाहर की दुनिया में तो सक्रिय हैं, पर आत्मज्ञान और सत्संग की ओर उनका ध्यान नहीं है। यदि वे गुरु भगवंतों के पास आएंगे तो जीवन में अवश्य परिवर्तन आएगा। माता-पिता से अधिक प्रभाव गुरुओं का होता है।
साध्वी: यदि कोई युवा एक बार चातुर्मास में आ जाए, तो उसका मन फिर-फिर आने का करेगा। सत्संग, नियम, अनुशासन और अध्यात्म का प्रभाव स्थाई होता है।
साध्वी: जीवनशैली में आया बदलाव ही इसका प्रमुख कारण है। मशीनों का अत्यधिक उपयोग, जंक फूड और पैकेज्ड उत्पादों का सेवन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है। संयम और प्राकृतिक जीवन शैली अपनाने की आवश्यकता है।
साध्वी: महिलाओं के लिए, प्रतिदिन दोपहर 3 से 4 बजे विशेष कक्षा लगेगी, जिसमें जैन तत्वज्ञान, खुशहाल जीवनशैली, व्यवहार-कुशलता आदि पर चर्चा होगी। प्रतियोगिताएं और खेलों के माध्यम से भी ज्ञानवर्धन किया जाएगा। बालिकाओं के लिए, प्रत्येक रविवार विशेष शिविर होंगे। इसमें आत्मनिर्भरता, व्यक्तित्व विकास, सामाजिक व्यवहार और जीवन की दिशा तय करने की बातें सिखाई जाएंगी।
साध्वी: हम यही चाहते हैं कि हर व्यक्ति चातुर्मास का महत्व समझे और आत्मिक रूप से समृद्ध हो। धर्म से जुडऩे का यह सुंदर अवसर है। इसका लाभ सभी को उठाना चाहिए।