हाल ही में वे राजपुरोहित विकास संघ राणेबेन्नूर की ओर से आयोजित गुरु पूर्णिमा महोत्सव में अपने पारंपरिक राजस्थानी वेशभूषा में शामिल हुए। सिर पर पगड़ी, धोती-कुर्ता और गले में पारंपरिक अंगोछा उनकी यह सादगी और संस्कृति से जुड़ाव हर किसी को आकर्षित कर गया।
देवासी समाज पारंपरिक रूप से पशुपालन से जुड़ा रहा है और नारायण देवासी भी वर्षों तक राजस्थान के कोटा-बूंदी क्षेत्र में भेड़ पालन करते रहे। उन्होंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा, लेकिन जीवन के अनुशासन में वे शिक्षितों को भी पीछे छोड़ते हैं। सुबह 5 बजे उठकर भगवान का स्मरण करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। उम्र के इस पड़ाव में भी वे प्रतिदिन 3-4 किलोमीटर पैदल चलते हैं और सादा जीवनशैली अपनाए हुए हैं। बाजरे का सोगरा उनका प्रिय भोजन है।
उनके दो बेटे शिवमोग्गा और राणेबेन्नूर में व्यवसाय कर रहे हैं। नारायण देवासी कहते हैं, प्रदेश कोई भी हो, पहचान हमारी अपनी संस्कृति से ही बनती है। हमें अपने पहनावे और परंपराओं को कभी नहीं भूलना चाहिए।