बच्चों की सुरक्षा के नाम पर हो रहा ध्वस्तीकरण
ढाका के एक अधिकारी ने बताया कि यह इमारत अब बच्चों के लिए खतरा बन गई है। जब भी बच्चे इसमें आते हैं, तो गिरने का डर बना रहता है। इसलिए इस जगह पर नई अर्ध-कंक्रीट बिल्डिंग बनाने की योजना है। उन्होंने यह भी बताया कि काम के लिए सभी जरूरी अनुमति ली जा चुकी है।
ममता बनर्जी ने की बांग्लादेश और भारत सरकार से अपील
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया पर लिखा, “यह खबर बेहद दुखद है। उपेन्द्र किशोर बंगाल के पुनर्जागरण के प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। रे परिवार का बंगाली संस्कृति में अहम योगदान रहा है। इस घर को गिराना इतिहास और संस्कृति के विरुद्ध है।” उन्होंने बांग्लादेश सरकार और वहां के जागरूक नागरिकों से इसे बचाने की अपील की।
सांस्कृतिक धरोहर बचाने की मांग तेज
इस मामले को लेकर भारत और बांग्लादेश दोनों में कई लोगों ने चिंता जताई है। लोग मांग कर रहे हैं कि इस ऐतिहासिक इमारत को संग्रहालय या सांस्कृतिक केंद्र के रूप में संरक्षित किया जाए, जिससे आने वाली पीढ़ियाँ सत्यजीत रे और उनके परिवार की विरासत को जान सकें।
संस्कृति से जुड़ा मुद्दा बना राजनीतिक बहस
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया के बाद यह मुद्दा तेजी से तूल पकड़ रहा है। उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, यह खबर बहुत ही दुखद है। उपेन्द्र किशोर बंगाल के पुनर्जागरण के स्तंभ हैं। रे परिवार का बंगाली संस्कृति में गहरा योगदान है। इस घर को गिराना सांस्कृतिक विरासत पर हमला है।
इस कदम की सभी जगह आलोचना हो रही
सामाजिक कार्यकर्ताओं, इतिहासकारों और फिल्मी जगत के लोगों ने भी इस कदम की आलोचना की है। कई बुद्धिजीवियों ने कहा है कि बांग्लादेश सरकार को इसे संरक्षित करने के प्रयास करने चाहिए थे, ना कि ध्वस्त करने के।
उपेन्द्र किशोर राय चौधरी कौन थे ?
बहुत से लोग सत्यजीत रे को जानते हैं, लेकिन उनके दादा उपेन्द्र किशोर राय चौधरी की भूमिका को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। वे एक लेखक, वैज्ञानिक, छायाकार और प्रकाशक थे। उन्होंने बच्चों की प्रसिद्ध पत्रिका “संडेश” की शुरुआत की थी। उनका बंगाल के नवजागरण में अहम योगदान रहा है। उनका घर केवल एक मकान नहीं, बल्कि बंगाली रचनात्मकता का एक स्मारक है।
भारत सरकार क्या कदम उठाएगी ?
अब सभी की निगाहें भारत सरकार और विदेश मंत्रालय पर हैं। ममता बनर्जी द्वारा केंद्र से दखल की अपील के बाद उम्मीद की जा रही है कि भारत इस विषय पर राजनयिक स्तर पर बात उठा सकता है। इसके अलावा, संस्कृति मंत्रालय की ओर से भी कोई औपचारिक बयान आना बाकी है। अगर यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र की विरासत संरक्षण संस्था UNESCO के संज्ञान में लाया जाए, तो इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी समर्थन मिल सकता है।