Jaipur: करोड़ों के दावे कूड़े में… न गंदगी हटी, न चमक दिखी, टॉप-20 में भी नहीं आए
स्वच्छ सर्वेक्षण: जो शहर गुलाबी नगर से पीछे थे, उन्होंने गंभीरता से तैयारी की तो कई शहरों ने टॉप-20 में जगह बनाई। वहीं, जयपुर हर बार टॉप-20 से बाहर रहा है।
जयपुर. राजधानी जयपुर की दोनों शहरी सरकारों को स्वच्छ सर्वेक्षण 2023 के परिणामों से ज्यादा उम्मीद नहीं है। ग्रेटर निगम को जरूर मिनिस्ट्रियल श्रेणी में अवॉर्ड मिल रहा है। वहीं, हैरिटेज निगम खाली हाथ रहेगा। जो शहर गुलाबी नगर से पीछे थे, उन्होंने गंभीरता से तैयारी की तो कई शहरों ने टॉप-20 में जगह बनाई। वहीं, जयपुर हर बार टॉप-20 से बाहर रहा है। अब तक की सर्वश्रेष्ठ रैंक 28वीं रही है, जो वर्ष 2020 में हासिल की थी। पुणे, रायपुर से लेकर लखनऊ और ग्वालियर जैसे शहर भी जयपुर से सफाई के मामले में आगे निकल गए।
नहीं मिला फायदा राजधानी में दो नगर निगम (ग्रेटर और हैरिटेज) बनने के बाद अब तक तीन रैंक जारी हुई हैं। हालांकि, इस दौरान भी स्वच्छता की रैंकिंग में कोई सुधार नहीं हुआ।
वर्ष
हैरिटेज
ग्रेटर
2021
32
36
2022
26
33
2023
171
173
एक निगम के दौरान ये हाल
वर्ष
रैंक
2017
215
2018
39
2019
44
2020
28
इन शहरों ने सुधारी रैकिंग
शहर
2019
2020
2022
पिछली रैंक
ग्वालियर
59
13
18
16
पुणे
37
15
9
10
लखनऊ
121
12
12
44
रायपुर
41
21
11
12
प्राथमिक काम भी नहीं कर पाए -ओपन कचरा डिपो: राजधानी में अब तक ओपन कचरा डिपो खत्म नहीं हो पाए हैं।
-गीला-सूखा कचरा: दो निगम होने के बाद भी अब तक एक साथ ही दोनों तरह का कचरा लिया जा रहा है। -मैकेनाइज्ड स्वीपिंग: अन्य शहरों में इसे बढ़ावा दिया गया है। जयपुर में सिर्फ माउंटेन स्वीपर सड़कों पर चक्कर लगा रहे हैं।
-हूपर नियमित नहीं: शहर के वार्डों में हूपर नियमित रूप से नहीं आ रहे। खासकर शहर के बाहरी वार्डों में बुरा हाल है। -लिटिरबिन्स की दिक्कत: सड़क किनारे लिटरबिन्स (डस्टबिन) कम लगे हुए हैं। जो लगे हैं, उनका कचरा खाली नहीं होता।
-प्लांट में भी पीछे: पिछले कई वर्ष से प्लांट की कवायद चल रही है। अब जाकर दो प्लांट चालू हो पाए हैं। कचरे से बिजली और सीएडंडी वेस्ट प्लांट काम कर रहे हैं।
टॉपिक एक्सपर्ट: प्लानिंग के अभाव में बिगड़ती रैंकिंग
स्वच्छ सर्वेक्षण में रैंकिंग तभी सुधरेगी, जब टूल किट के हिसाब से काम होगा। क्षणिक की बजाय वर्ष भर काम करने की जरूरत है। राजधानी जयपुर के दोनों निगम में प्लानिंग का अभाव है। एक तरफ निगम 100 फीसदी डोर टू डोर कचरा संग्रहण का दावा करते हैं। इसके बाद भी ओपन कचरा डिपो बन रहे हैं। सेग्रीगेशन का पैटर्न भी खराब है। ज्यादातर ट्रांसफर स्टेशन भी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं। डोर टू डोर पर सबसे अधिक काम करने की जरूरत है। -विवेक एस अग्रवाल, कचरा
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