विद्यालय की छत और दीवारें इतनी कमजोर हो चुकी हैं कि वे किसी भी वक्त गिर सकती हैं। कक्षाओं की दीवारों पर दरारें इतनी बड़ी हो गई हैं कि प्लास्टर उखड़ने लगा है। बारिश के मौसम में स्थिति और भी भयावह हो जाती है, जब पानी टपकने के कारण बच्चे बरामदे के एक कोने में सिमट कर बैठने को मजबूर होते हैं। ऐसे असुरक्षित माहौल में बच्चों को पढ़ना पड़ता है, जहां हर पल किसी बड़े हादसे का खतरा बना रहता है। रोजाना स्कूल खुलते ही अध्यापक और विद्यार्थी छत के टूटे मलबे को साफ करने लगते हैं, जो अब उनकी दिनचर्या बन चुकी है।
सरकार की ओर से जहां प्रवेशोत्सव और नामांकन बढ़ाने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं, वहीं इस स्कूल में पिछले पांच सालों में नामांकन आधे से भी कम रह गया है। सत्र 2020-21 में नामांकन 80, 2021-22 में 55, 2022-23 में 51, 2023-24 में 36 और सत्र 2024-25 में नामांकन 30 ही रह गया है।
ग्रामीणों और अभिभावकों का कहना है कि वे कई बार प्रशासन और शिक्षा विभाग को इस गंभीर समस्या के बारे में सूचित कर चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई। अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने में डरते हैं, पर शिक्षा के अभाव में उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा। प्रधानाध्यापिका और ग्रामीणों ने सरकार के आयोजित शिविरों में भी इस जर्जर भवन की समस्या को लेकर कई बार ज्ञापन दिए, लेकिन जिम्मेदार अब तक गंभीर नहीं हुए।
जिम्मेदारों की अनदेखी की वजह से बच्चों की सुरक्षा खतरे में हैं। प्रशासन को अब तुरंत कदम उठाकर इस जर्जर भवन का जीर्णोद्धार करना होगा या फिर बच्चों के लिए सुरक्षित और बेहतर पढ़ाई का वैकल्पिक इंतजाम करना चाहिए।
कुछ दिनों पूर्व दनाऊ कलां में आयोजित हुए पं. दीनदयाल उपाध्याय संबल पखवाड़ा शिविर में शिविर प्रभारी को जर्जर स्कूल के बारे में ज्ञापन दिया था। जर्जर भवन और विद्यालय में पानी की व्यवस्था नहीं होने के कारण अभिभावकों द्वारा लगातार टीसी के लिए आवेदन किया जा रहा है, जिससे वर्तमान सत्र में 30 से भी कम विद्यार्थियों की रहने की आशंका है।
-रामपति, प्रधानाध्यापिका