यहां से निकलती है दक्षिण गंगा
यह वही स्थान है जहां महादेव की कृपा से ‘दक्षिण गंगा’ निकली, जिसे अभी गोदावरी के नाम से जाना जाता है। यह वही गोदावरी है जिसे प्राचीन काल में गौतमी नदी के नाम से जाना जाता था।
लगता है कुंभ मेला
कुंभ का मेला देश में जिन 4 जगहों पर लगता है, उनमें से एक नासिक और त्र्यंबक का क्षेत्र है। महाराष्ट्र के नासिक जिले के पास ब्रह्मगिरी पर्वत की तलहटी में स्थित इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां स्थित शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था। इस गौतम ऋषि की तपोस्थली भी कहा जाता है।
यहां भगवान राम आए थे श्राद्ध करने
यहां पास स्थित ब्रह्मगिरी पर्वत को शिव स्वरूप माना जाता है, वहीं नीलगिरी पर्वत पर नीलाम्बिका देवी और दत्तात्रेय गुरु का मंदिर स्थित है। साथ ही ब्रह्मगिरी पर्वत के एक तरफ गंगा द्वार है, जहां देवी गोदावरी का मंदिर स्थित है। इसके साथ ही इस मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है कि यहां भगवान राम अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध करने के लिए आए थे। गौतम ऋषि ने यहां मंदिर के बगल में स्थित कुशावर्त कुंड में पवित्र स्नान किया था।
ये है अहिल्या की कथा
इसके साथ ही गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या से भी यहां की कहानी जुड़ती है। भगवान राम के चरण स्पर्श से उनको मोक्ष मिला था। यहां पास से अहिल्या नदी भी बहकर निकलती है। ब्रह्मगिरी पर्वत के ऊपर से गोदावरी (गौतमी नदी), बगल से गंगा की एक धारा और फिर एक तरफ से अहिल्या नदी निकलकर मंदिर के पास संगम करती हैं। यहां से यह गोदावरी नदी के रूप में बहकर आगे निकल जाती है।
अनोखा है यह मंदिर
त्र्यंबकेश्वर मंदिर के नीचे से निकलने वाली एक भूमिगत जलधारा गोदावरी नदी में मिलने से पहले इस लिंगम के ऊपर से बहती है। मंदिर नासिक से लगभग 28 किमी की दूरी पर स्थित है।
लगता है कुंभ मेला
बृहस्पति के सिंह राशि में आने पर यहां बड़ा कुंभ मेला लगता है। शिवपुराण में वर्णन है कि गौतम ऋषि तथा गोदावरी और सभी देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने इस स्थान पर निवास करने का निश्चय किया और त्र्यंबकेश्वर नाम से विख्यात हुए। कुशा से बांधा नदी को
त्र्यंबकेश्वर परिसर में कुशाव्रत नामक कुंड है जो गोदावरी नदी का स्रोत है। कहा जाता है कि ब्रह्मगिरी पर्वत से गोदावरी बार-बार लुप्त हो जाया करती थी। गोदावरी के पलायन को रोकने के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर गोदावरी को बंधन में बांध दिया था। इसके बाद से इस कुंड में हमेशा पानी रहता है। इस कुंड को कुशावर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है।
शैव अखाड़े करते हैं शाही स्नान
कुंभ स्नान के समय शैव अखाड़े इसी कुंड में शाही स्नान करते हैं। शिव पुराण के अनुसार ब्रह्मगिरी पर्वत की चोटी तक पहुंचने के लिए सैकड़ों सीढ़ियां बनाई गई हैं। इन सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद रामकुंड और लक्ष्मण कुंड मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुंचने पर गोमुख से निकलती हुईं भगवती गोदावरी के दर्शन प्राप्त होते हैं। गोदावरी नदी की पवित्रता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इसे दक्षिण गंगा और वृद्धा गंगा के नाम से भी जाना जाता है।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर दर्शन का महत्व
इसके साथ ही मान्यता है कि जो कोई व्यक्ति त्र्यंबकेश्वर मंदिर मे दर्शन करता है, उसे मृत्यु के बाद मोक्ष (मुक्ति ) प्राप्त होता है। इसके कई कारण है जैसे यह भगवान गणेश की जन्मभूमि भी है, जिसे त्रिसंध्या गायत्री के रूप मे जानी जाती है। त्र्यंबकेश्वर, श्राद्ध अनुष्ठान (पूर्वजो की आत्माओं को मुक्ति दिलाने के लिए किया जाने वाला हिंदू अनुष्ठान) करने के लिए सबसे पवित्र स्थान है। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में इस शिवलिंग के बारे में वर्णित है… सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरितीरपवित्रदेशे | यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे || अर्थः जो गोदावरी तट के पवित्र देश में सह्यपर्वत के विमल शिखर पर वास करते हैं, जिनके दर्शन से तुरंत ही पातक नष्ट हो जाता है, उन श्रीत्र्यम्बकेश्वर को मैं प्रणाम करता हूं।
इस स्थान को माना जाता है हनुमान जन्मस्थान
यहीं पास में अंजनेरी हिल है जिसे भगवान हनुमान का जन्मस्थान कहा जाता है। इस पहाड़ी का नाम भगवान हनुमान की मां अंजनी के नाम पर रखा गया है। यहां आपको अंजनेरी देवी मंदिर और हनुमान मंदिर मिलेगा।
रामायण से जुड़े कई स्थान
वहीं त्र्यंबक गांव से 40 किलोमीटर पहले नासिक शहर पड़ता है जहां रामायण से जुड़े कई स्थान हैं। इनमें रामकुंड, पंचवटी और तपोवन प्रमुख है। यहीं से रामायण का दूसरा अध्याय शुरू हुआ था। यहां भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता ने वनवास के दौरान काफी समय व्यतीत किया था। रामकुंड दक्षिण की गंगा कही जाने वाली गोदावरी नदी के घाट पर है।
इस एकमात्र शिव मंदिर में नहीं विराजते नंदी
यहीं पास में गोदावरी नदी के तट पर बना प्रसिद्ध कपालेश्वर महादेव मंदिर देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां उनके वाहन नंदी मंदिर में स्थापित नहीं है। कपालेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन के बाद आप कुछ ही समय में पंचवटी पहुंच सकते हैं।
माता सीता ने की थी शिव आराधना
कपालेश्वर मंदिर से पंचवटी 400 मीटर की दूरी पर है। यहां पर आपको गोरेराम मंदिर मिलेगा। इसके बाद आपको 200 मीटर की दूरी पर सीता गुफा मिलेगी। यहां पर बरगद के पांच बहुत ही पुराने पेड़ दिखाई देंगे। ये पेड़ आपस में जुड़े हुए है। ऐसा कहा जाता है कि वनवास के दौरान माता सीता ने इसी गुफा में सबसे ज्यादा भगवान शिव की आराधना और तपस्या की थी।