मुख्य मंदिर में दो शिवलिंग की पूजा
मान्यता है कि प्रभु श्रीराम ने रावण का अंत कर सीताजी को वापस पाया तो उन पर ब्राह्मण हत्या का पाप लगा। इस पाप से मुक्त होने के लिए प्रभु श्रीराम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना करने का विचार किया। उन्होंने पवनसुत हनुमान को कैलाश जाकर शिवलिंग लाने की आज्ञा दी। हनुमान जी को शिवलिंग लेकर लौटने में देर हो गई तो मां सीता ने समुद्र किनारे रेत से ही शिवलिंग की स्थापना कर दी। यही शिवलिंग ‘रामनाथ’ कहलाता है। 
ब्रह्म हत्या के पाप से मिलता है छुटकारा
रामेश्वरम का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है। इस मंदिर के बेहद खूबसूरत गलियारे में 108 शिवलिंग और गणपति के दर्शन होते हैं। ऐसे में कहा जाता है कि यहां दर्शन और पूजा करने से ब्राह्मण हत्या जैसे पापों से मुक्ति मिलती है।यहां रामेश्वरम में महादेव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन से पहले अग्निकुंड में स्नान करने को बेहद पवित्र माना गया है। रामेश्वरम मंदिर के भीतर 22 कुंड हैं।
इस तीर्थ में स्नान से दूर होती है बीमारियां
मान्यता है कि इन पवित्र कुंडों को भगवान श्री राम ने अपने बाण से बनाया था। जहां चारों तरफ समुद्र का खारा पानी है, वहीं इन कुंडों का पानी मीठा है। यह भी एक आश्चर्य ही है। इसे ही ‘अग्नि तीर्थम’ कहा जाता है, और इसको लेकर मान्यता है कि इस तीर्थ में स्नान करने से सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं और सारे पापों का भी नाश हो जाता है।सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः । श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥ जो भगवान श्री रामचन्द्रजी के द्वारा ताम्रपर्णी और सागर के संगम में अनेक बाणों द्वारा पुल बांधकर स्थापित किए गए, उन श्री रामेश्वर को मैं नियम से प्रणाम करता हूं।
धनुषकोड़ी का कोथंडारामस्वामी मंदिर
यहां पास ही स्थित कोथंडारामस्वामी मंदिर भगवान राम को समर्पित है और रामेश्वरम के धनुषकोडी क्षेत्र में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यह वह स्थान है, जहां रावण के छोटे भाई विभीषण ने लंका छोड़ने के बाद भगवान राम से शरण मांगी थी। इसलिए, कोथंडारामस्वामी मंदिर में विभीषण की भी पूजा की जाती है।
पंचमुखी हनुमान मंदिर
इसके साथ ही यहां पंचमुखी हनुमान मंदिर स्थित है, जो भगवान हनुमान को समर्पित एक अनोखा मंदिर है। यह हनुमान की मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें पांच मुख हैं, जिनमें से प्रत्येक देवता के एक अलग पहलू को दर्शाता है। ये मुख हनुमान, नरसिंह, गरुड़, वराह और हयग्रीव हैं।यहां है गंधमादन पर्वत
यहीं गंधमादन पर्वतम एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहां भगवान राम ने एक चट्टान पर अंकित चक्र (पहिए) पर अपने पदचिह्न छोड़े थे।पास में ही है रामसेतु
वहीं पास ही में राम सेतु है। चूना पत्थर की चट्टानों से निर्मित यह सेतु भारत को लंका से जोड़ता है। 30 किलोमीटर की लंबाई वाला यह पुल धनुषकोडी और श्रीलंका के मन्नार द्वीप को जोड़ने वाला पुल था।पौराणिक कथाओं के अनुसार, राम सेतु का निर्माण वानर सेना द्वारा लंका पहुंचने के लिए किया गया था ताकि देवी सीता को बचाया जा सके और राक्षस रावण को मारा जा सके।