जर्जर भवनों से लेकर रास्तों तक बेहाल व्यवस्था
बच्चों को सिर्फ टपकती छतों और जर्जर स्कूल भवनों में ही पढऩा नहीं पड़ रहा, बल्कि स्कूल तक पहुंचने का रास्ता भी उनके लिए मुसीबत बन गया है। कई जगह तो स्कूल तक कोई पक्का रास्ता ही नहीं है। बारिश में यह रास्ते दलदल में तब्दील हो जाते हैं। बच्चों की पढ़ाई छूट रही है, लेकिन प्रशासन चुप है।सिस्टम की लापरवाही उजागर
यह हालात दर्शाते हैं कि ‘सब पढ़ें, सब बढ़ें’ सिर्फ कागजी नारा बनकर रह गया है। जब तक बच्चों के लिए सुरक्षित और सुगम मार्ग नहीं बनेगा, तब तक हर बच्चा स्कूल नहीं पहुंच पाएगा। सवाल यह है कि क्या सरकार को सडक़ें सिर्फ चुनाव के समय याद आती हैं। बच्चों के लिए आखिर सुगम मार्ग क्यों नहीं हैं।
ये हालात उजागर कर रहे सिस्टम की नाकामी
ढीमरखेड़ा क्षेत्र के सारंगपुर से झकाझोर-संगमा करीब 3-4 किलोमीटर स्कूली बच्चे कठिन डगर से सफर करते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि इन गांवों तक पहुंचने के लिए एकमात्र कच्चा रास्ता है। जंगली क्षेत्र से सटे झकाझोर और रिछाईघाट-संगमा में सरकारी स्कूलों का संचालन भी होता है। जहां बच्चों के आने-जाने का रास्ता खतरनाक है। झकाझोर गांव में प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल जबकि संगमा गांव में प्राथमिक स्कूल हैं। रास्ता ठीक नहीं होने के कारण विद्यार्थियों और शिक्षकों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पुल-पुलिया तो कहीं खेतों की मेढ़ से होकर स्कूलों तक विद्यार्थी पढऩे के लिए जाते हैं। बारिश के दिनों में विद्यार्थियों को खतरा बना रहता है।
यहां भी हैं यह हालात
रीठी जनपद पंचायत के अंतर्गत ग्राम पंचायत केना में आने वाले उजियारपुर और बखलेहटा गांवों को जोडऩे वाली पुलिया बह चुकी है। इसके कारण ग्रामीणों की मुश्किलें कई गुना बढ़ गई हैं। सबसे अधिक परेशानी स्कूली छात्र-छात्राओं को उठानी पड़ रही है। गांव के सैकड़ों बच्चे स्कूल जाने के लिए रोजाना बहते पानी को पार करने पर मजबूर हैं। कुछ छात्र बिजली के खंभों का सहारा लेकर पानी पार कर रहे हैं, तो कुछ बच्चों ने खतरों को देखते हुए स्कूल जाना ही छोड़ दिया है। वहीं अब बच्चों को 5 किलोमीटर का लंबा और जोखिमभरा रास्ता तय करना पड़ रहा है।
बहोरीबंद क्षेत्र में भी समस्या
बहोरीबंद विकासखंड के सिहुडी बसेहडी स्कूल का मुख्य मार्ग 10 वर्षों से बदहाल पड़ा है। स्कूल तक सडक़ न होने के कारण ग्रामीण और स्कूली छात्र-छात्राओं को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। बारिश के मौसम में दलदल में तब्दील सडक़ स्कूली बच्चों और बीमारी को ऐसी स्थिति में अधिक समस्या होती है। कच्ची सडक़ में कीचड़ होने के कारण स्कूल तक कोई अधिकारी का वहां भी पहुंच पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। यदि किसी छात्र की तबीयत खराब हो जाए और 108 भी बुलवानी पड़े तो 108 भी में दिककत हो सकती है। ग्रामीण निवासी सुनमान पटेल, रामदत्त लोधी, रवि जैन, अनिरुद्ध पटेल, सुरेंद्र महतो सहित शिक्षक और छात्र-छात्राओं ने बताया कि बच्चे फिसल कर गिर जाते हैं। गंभीर समस्या का समाधान नहीं हो रहा। सोसाइटी से लेकर स्कूल तक 800 फीट की दूरी है, जो बहुत मुश्किल डगर है।बेटियों ने बयां की पीड़ा
छोटे-छोटे बच्चे स्कूल जाते समय फिसल कर गिर जाते हैं। हम लोगों की भी बाजू से तेज रफ्तार में दो पहिया व चार पहिया निकलने पर कीचड़ उछलने से यूनीफॉर्म खराब हो जाती है। रोजाना परेशानियों के बीच स्कूल जाना पड़ रहा है।रिचा पटेल, छात्रा।
मोनिका लोधी, छात्रा।
स्कूलों की मरम्मत के लिए बजट आया है, शीघ्र ही प्रस्तावों की जांच कराकर राशि जारी की जाएगी। जिन स्कूलों के मार्ग में ज्यादा समस्या है वहां पर संबंधित विभागों से चर्चा कर ठीक कराने पहल की जाएगी।
पीपी सिंह, जिला शिक्षा अधिकारी।