कोल्हापुरी चप्पलों को महाराष्ट्र का सांस्कृतिक प्रतीक माना जाता है। कोल्हापुरी स्टाइल चप्पलों को सही मान्यता नहीं देने की वजह से प्राडा आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। हालांकि इसके कुछ दिनों बाद अब प्राडा की एक टीम कोल्हापुर पहुंची, जहां उन्होंने इन प्रसिद्ध कोल्हापुरी चप्पलों के पीछे छिपी इतिहास और कारीगरी को समझने का प्रयास किया।
महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर के अध्यक्ष ललित गांधी ने बताया कि कुछ दिन पहले प्राडा ने इटली के मिलान शहर में एक फैशन शो आयोजित किया था, जहां कोल्हापुरी चप्पलें प्रदर्शित की गईं। हालांकि, प्राडा ने इन्हें सिर्फ चमड़े के कपड़े के रूप में वर्णित किया, उनके मूल स्थान के बारे में नहीं बताया।
आलोचना के बाद बुधवार को प्राडा के छह वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने कोल्हापुर पहुंचकर पारंपरिक क्राफ्ट को बेहतर तरीके से समझा और कारीगरों के हुनर को करीब से समझने के बाद उन्हें सही पहचान दिलाने का वादा किया। गांधी ने कहा, “उन्होंने वादा किया कि ऐसी ग़लती अब कभी नहीं होगी। साथ ही प्राडा के प्रतिनिधियों ने यह भी वादा किया कि वे कोल्हापुरी चप्पलों को वैश्विक स्तर पर सही मान्यता दिलाने में मदद करेंगे।“
इटलियन फैशन हाउस प्राडा की टीम ने कोल्हापुर के जवाहर नगर क्षेत्र का दौरा किया, जहां पारंपरिक कोल्हापुरी फुटवियर बनाने वाले कई स्थानीय कारीगरों से भी बातचीत की। मिलान फैशन सप्ताह में प्राडा के कम से कम सात स्प्रिंग/समर 2026 कलेक्शन में मॉडल्स ने कोल्हापुरी स्टाइल के चमड़े के चप्पल पहने थे। इनकी कीमत लगभग 1.2 लाख रुपये थी। प्राडा ने अपने शो के नोट्स में चप्पलों को सिर्फ चमड़े के सैंडल बताया था, उन्होंने इसके भारतीय संबंध का कोई संदर्भ नहीं दिया। जिससे खासकर पश्चिमी महाराष्ट्र में कोल्हापुरी चप्पल के पारंपरिक निर्माताओं में नाराजगी पैदा हुई।
दरअसल महाराष्ट्र में बनने वाली कोल्हापुरी चप्पलें भारत में 2019 से जीआई का दर्जा प्राप्त है, जो इनकी अनोखी धरोहर और क्षेत्रीय पहचान को मान्यता देता है। ‘महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर’ ने प्राडा को पत्र लिखकर इस पर नाराजगी जताई। जिसके जवाब में प्राडा ने कहा कि वह “जिम्मेदार डिज़ाइन प्रैक्टिस की ओर काम करेगा, सांस्कृतिक संलग्नता को बढ़ावा देगा, और स्थानीय भारतीय कारीगर समुदायों के साथ एक मानवीय विनिमय के लिए संवाद खोलेगा।” इसके अलावा पिछले हफ्ते ही, प्राडा ने भारतीय कारीगरों के साथ साझेदारी में “मेड इन इंडिया” कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित लिमिटेड एडिशन कलेक्शन लॉन्च करने की भी इच्छा जताई।
कोर्ट में पहुंचा मामला
गौरतलब हो कि कोल्हापुरी चप्पलों के अनधिकृत उपयोग के आरोप में प्राडा के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दाखिल की गई है। इसमें अनुरोध किया गया है कि भारतीय कारीगरों के डिजाइन की कथित रूप से नकल करने के लिए इटलियन फैशन ब्रांड को उन्हें मुआवजा दिए जाने का आदेश दिया जाए। याचिका में कहा गया है कि प्राडा के चप्पलों का डिजाइन कोल्हापुरी चप्पल से बहुत अधिक मिलता जुलता है। पुणे के छह वकीलों द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि कोल्हापुरी चप्पल महाराष्ट्र का सांस्कृतिक प्रतीक है। याचिका में प्राडा को बिना किसी अनुमति के इस चप्पल का व्यवसायीकरण और उपयोग करने से रोके जाने और फैशन ब्रांड को सार्वजनिक रूप से माफी मांगने का निर्देश दिए जाने का भी अनुरोध किया गया है। साथ ही प्राडा के खिलाफ जांच की भी मांग की गई है। हालांकि हाईकोर्ट ने यह याचिका ख़ारिज कर दी। इस बीच मामले के तूल पकड़ता देख प्राडा ने स्वीकार किया है कि उसने कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित होकर ही अपनी चप्पलें बनाई हैं।