scriptगेड़ी बिना क्यों अधूरा है छत्तीसगढ़ का पहला हरेली तिहार, जानिए पर्व की विशेषताएं व महत्व | Hareli Tihar 2025: CG first Hareli Tihar, know features and importance of the festival | Patrika News
रायपुर

गेड़ी बिना क्यों अधूरा है छत्तीसगढ़ का पहला हरेली तिहार, जानिए पर्व की विशेषताएं व महत्व

Hareli Tihar 2025: हरेली तिहार छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जीवन में रचा-बसा पर्व है, जो सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है। यह त्यौहार उस समय आता है, जब खेतों में बीज बो दिए जाते हैं, चलिए जानतें है महत्व…

रायपुरJul 23, 2025 / 07:03 pm

चंदू निर्मलकर

Hareli Tihar 2025

छत्तीसगढ़ का लोक पर्व ( Photo – Patrika )

Hareli Tihar 2025: छत्तीसगढ़ की धरती पर जब सावन की पहली अमावस्या दस्तक देती है, तो प्रकृति के हर कोने में हरियाली की गूंज सुनाई देने लगती है। इसी उल्लास और जीवंतता का प्रतीक है ‘हरेली तिहार’, जो न केवल कृषि जीवन का उत्सव है, बल्कि छत्तीसगढ़ की गहराई से जुड़ी संस्कृति, परंपरा और लोकचेतना की झलक भी है। प्रदेश के खासकर ग्रामीण इलाकों में यह पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है। ​चलिए जानते हैं पर्व की विशेषताएं व महत्व..

Hareli Tihar 2025: छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार

हरेली तिहार छत्तीसगढ़ का प्रमुख पारंपरिक त्योहार है, जो मुख्य रूप से खेती, पर्यावरण और परंपरागत जीवनशैली से जुड़ा हुआ है। साथ ही यह प्रदेश का पहला त्योहार है जो धार्मिक आस्था और लोक परंपरा का अनोखा मिलन है। इस पर्व में कई तरह की रश्में निभाई जाती है। इसकी शुरुआत गाय, बैल की पूजा से होती है। वहीं निषाद, विश्वकर्मा, यादव समाज की प्रमुख भूमिका होती है। साथ ही इस त्योहार में नीम की टहनियां घर में लगाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि इससे घर की नाकारात्मक शक्तियां दूरी होती है। वहीं घर में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं। साथ ही हर वर्ग के लोग गेड़ी चढ़कर पर्व को हर्षोउल्लास के साथ मनाते हैं।
Hareli Tihar 2025
कृषि औजारों की करते है पूजा

हरेलीः हरियाली का पर्व, आत्मा की ताजगी

‘हरेली’ शब्द स्वयं में ही हरियाली का संदेश समेटे है। यह त्यौहार केवल प्रकृति की पूजा नहीं है, बल्कि उस श्रम का उत्सव है जो किसान खेतों में दिन-रात पसीना बहाकर रचता है। हरेली एक प्रतीक हैकृधरा और मानव के बीच उस अटूट संबंध का, जो भूमि को माता और हल को भगवान का दर्जा देता है। हरेली तिहार छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जीवन में रचा-बसा पर्व है, जो सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है। यह त्यौहार उस समय आता है, जब खेतों में बीज बो दिए जाते हैं और किसान आसमान की ओर टकटकी लगाए अच्छी वर्षा की प्रार्थना करता है।

धार्मिक आस्था और लोक परंपरा का मिलन

हरेली केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि लोक परंपरा का जीवंत रूप है। इस दिन हल, गैंती, कुदाल जैसे कृषि औजारों की पूजा की जाती है। किसान इन्हें सजाकर धूप-दीप दिखाते हैं। यह कर्म न केवल प्रकृति और औजारों के प्रति श्रद्धा को दर्शाता है, बल्कि जीवन की बुनियादी विनम्रता को भी प्रकट करता है। गौरी-गौरा की पूजा, महिलाएं पारंपरिक गीतों और पकवानों के साथ करती हैं, जिसमें मातृशक्ति की पूजा और पारिवारिक समरसता की कामना समाहित होती है।
CG Hareli Tihar

खेल, पकवान और उल्लास

हरेली तिहार का सबसे रंगीन पहलू हैकृगांव-गांव में गूंजते पारंपरिक खेल और व्यंजन। गेंड़ी चढ़ना, बच्चों और युवाओं के लिए साहस और संतुलन की परीक्षा है, जो उत्साह और मस्ती से भरा होता है। खो-खो, कबड्डी जैसे खेल गांव की मिट्टी से जुड़ी ऊर्जा को पुनः जीवित करते हैं। वहीं, रसोई घरों से आती चीला, खुरमी, फरहा, बबरा और ठेठरी की खुशबू न केवल स्वाद को जगाती है, बल्कि घर के भीतर प्रेम और सामूहिकता की भावना को गाढ़ा करती है।

सामाजिक समरसता का संदेशवाहक

हरेली तिहार की सबसे बड़ी विशेषता है इसकी सामाजिक समरसता। यह त्यौहार किसी जाति, वर्ग या धर्म की सीमा में बंधा नहीं है, बल्कि गांव का हर व्यक्ति इसमें बराबर का भागीदार होता है। यह पर्व बताता है कि जब समाज एक साथ उत्सव मनाता है, तो वह केवल आनंद नहीं बाँटता, बल्कि एकता और अपनापन भी गढ़ता है।
CG Hareli tihar 2025

नवयुग के लिए पुरातन का संदेश

आज जब आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी जड़ों से दूर हो रहे हैं, तब हरेली तिहार हमें फिर से हमारी मिट्टी, हमारे पूर्वजों और हमारी परंपराओं की ओर लौटने का निमंत्रण देता है। यह पर्व आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाता है कि विकास की असली नींव प्रकृति, परिश्रम और परंपरा में ही है।

गेड़ी की पूजा भी की जाती है

हरेली के दिन बच्चे बांस से बनी गेड़ी का आनंद लेते हैं। पहले के दशक में गांव में बारिश के समय कीचड़ आदि हो जाता था उस समय गेड़ी से गली का भ्रमण करने का अपना अलग ही आनंद होता है। गांव-गांव में गली कांक्रीटीकरण से अब कीचड़ की समस्या काफी हद तक दूर हो गई है। हरेली के दिन गृहणियां अपने चूल्हे-चौके में कई प्रकार के छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाती है। किसान अपने खेती-किसानी के उपयोग में आने वाले औजार नांगर, कोपर, दतारी, टंगिया, बसुला, कुदारी, सब्बल, गैती आदि की पूजा कर छत्तीसगढ़ी व्यंजन गुलगुल भजिया व गुड़हा चीला का भोग लगाते हैं। इसके अलावा गेड़ी की पूजा भी की जाती है।

पर्व की पांच बड़ी बातें

कृषि की शुरुआत का प्रतीक: हरेली त्योहार खेती-किसानी के नए मौसम की शुरुआत को दर्शाता है। किसान इस दिन अपने कृषि उपकरणों जैसे हल, गैंती, फावड़ा आदि की पूजा करते हैं। इससे यह मान्यता जुड़ी है कि उपकरणों की पूजा से अच्छी फसल और समृद्धि होती है।
प्रकृति और हरियाली का उत्सव:”हरेली” शब्द का मतलब ही होता है “हरियाली”। यह त्योहार बरसात और हरियाली के स्वागत का प्रतीक भी है।

गाय-बैल और पशुपालन का सम्मान: किसान इस दिन अपने गाय-बैलों को स्नान कराते हैं, उन्हें सजाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। इससे पशुओं के प्रति आभार और श्रद्धा प्रकट की जाती है, क्योंकि वे खेती में मदद करते हैं।
परंपरागत खेल-कूद और संस्कृति: इस दिन गांवों में गेंड़ी चढ़ना, रस्साकशी, भौंरा खेलना, नुक्कड़ नाटक, लोकगीत आदि परंपरागत गतिविधियाँ होती हैं। बच्चे और युवा गेंड़ी (बाँस से बने खंभों पर चढ़कर चलना) में भाग लेते हैं।
नकारात्मक शक्तियों को दूर करने की मान्यता: कई जगहों पर घर के दरवाजों पर नीम की टहनी लगाई जाती है, जिससे बुरी आत्माएं और बीमारियाँ दूर रहें।

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