चमकदार पंखुड़ियों और पीली कलगी से सजी छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी, जानें क्या है पहाड़ी मैना की अनोखी पहचान?
Chhattisgarh Pahadi Myna: छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना अपनी मधुर आवाज़ और मानव स्वर की नकल करने की अद्भुत क्षमता के लिए प्रसिद्ध है। मानसून में इसका प्रजनन काल होता है।
छत्तीसगढ़ की राजकीय पहाड़ी मैना का संरक्षण (Photo source- Patrika)
Chhattisgarh Pahadi Myna: छत्तीसगढ़ की जैव विविधता और प्राकृतिक धरोहर का एक अहम हिस्सा है राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना, जिसे अपनी मधुर आवाज़ और मानव स्वर की नकल करने की अद्भुत क्षमता के लिए जाना जाता है। काली चमकदार पंखुड़ियों, चमकीली पीली कलगी और नारंगी चोंच वाली यह आकर्षक पक्षी राज्य की शान और गौरव का प्रतीक है। यह मुख्य रूप से घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों में पाई जाती है।
मानसून के दौरान पहाड़ी मैना अपने प्रजनन काल में सक्रिय हो जाती है और पेड़ों के खोखलों में खूबसूरत घोंसले बनाती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर और कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए विशेष पहल की जा रही है।
विशेष पहचान और स्वरूप
छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता में अनेक दुर्लभ पक्षी और जीव-जन्तु पाए जाते हैं। इन्हीं में से एक है राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना (Hill Myna), जिसे स्थानीय बोली में ‘कुलुम किलिल्ली’ भी कहा जाता है। अपनी मधुर आवाज़ और बोलने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध यह पक्षी छत्तीसगढ़ की पहचान और गौरव का प्रतीक है।
पहाड़ी मैना अपनी काली चमकदार पंखुड़ियों, चमकीली पीली कलगी और नारंगी चोंच के कारण आसानी से पहचानी जाती है। इसकी आंखों के पास पीले रंग की मांसल त्वचा इसे और भी आकर्षक बनाती है। यह पक्षी लगभग 25-30 सेंटीमीटर लंबा होता है और जोड़े में रहना पसंद करता है।
पहाड़ी मैना की मानव-स्वर की नकल की अद्भुत क्षमता
पहाड़ी मैना (Hill Myna) अपनी मधुर और स्पष्ट आवाज़ के लिए जानी जाती है। इसकी सबसे अनोखी विशेषता है मानव स्वर की सटीक नकल करने की क्षमता। यह पक्षी आसपास सुनी गई आवाज़ों को, चाहे वे शब्द हों, सीटी हो या अन्य ध्वनियां, बेहद सटीकता से दोहरा सकती है।
कैसे सीखती है बोलना?
पहाड़ी मैना सामाजिक और अनुकरणशील पक्षी है। यह अपने आसपास सुने गए शब्दों और ध्वनियों को याद रखकर उन्हें कई बार दोहराने का प्रयास करती है। नियमित संवाद और प्रशिक्षित वातावरण में यह 20-30 शब्दों तक बोल सकती है।
लोकप्रियता का कारण
अपनी इस अनोखी क्षमता के कारण यह पक्षी पक्षी प्रेमियों और शोधकर्ताओं के बीच बेहद लोकप्रिय है। इसे पालतू रूप में भी पाला जाता है, क्योंकि यह न केवल आवाज़ की नकल करती है, बल्कि समय के साथ मालिक की आवाज़ को भी पहचानने लगती है।
कांगेर घाटी का संरक्षण प्रयास
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान, जो बस्तर क्षेत्र में स्थित है, पहाड़ी मैना का प्रमुख आवास माना जाता है। वर्तमान में यहां लगभग 150 से अधिक घोंसलों की सुरक्षा और निगरानी की जा रही है। ‘मैना मित्र’ नामक स्थानीय समूह और वन विभाग की टीमें मिलकर इसके संरक्षण और संवर्धन में लगी हैं।
जैव विविधता और संरक्षण का संतुलन
जैसे-जैसे बस्तर की घाटियां मानसूनी बारिश से हरियाली की ओर बढ़ती हैं, पहाड़ी मैना का यह प्रजनन काल जैव विविधता और मानवीय गतिविधियों के बीच नाजुक संतुलन की याद दिलाता है। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन द्वारा इन पक्षियों को निवास स्थान के नुकसान और अवैध पक्षी व्यापार जैसे खतरों से बचाने के लिए सतत निगरानी की जा रही है।
पहाड़ी मैना का संरक्षण क्यों ज़रूरी है?
छत्तीसगढ़ की पहचान और गौरव पहाड़ी मैना छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी है। यह राज्य की प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता का प्रतीक मानी जाती है। इसकी पहचान राज्य की संस्कृति और पर्यावरणीय धरोहर से जुड़ी है।
विलुप्ति के खतरे में आवास तेजी से हो रही जंगलों की कटाई, खनन और शहरीकरण के कारण पहाड़ी मैना के प्राकृतिक आवास सिमटते जा रहे हैं। यदि समय रहते इसके संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह पक्षी विलुप्ति के कगार पर पहुंच सकता है।
पारिस्थितिक संतुलन में भूमिका पहाड़ी मैना बीज फैलाने और कीट नियंत्रण जैसे कार्यों में योगदान देती है। यह जंगलों की पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। मानव-स्वर की नकल की अद्भुत क्षमता
इस पक्षी की मानव स्वर की नकल करने की विशेष क्षमता इसे अलग पहचान देती है। इसकी मीठी आवाज़ और बोलने की कला ने इसे न केवल पक्षी प्रेमियों बल्कि शोधकर्ताओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना दिया है।
संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान और अन्य संरक्षित क्षेत्रों में ‘मैना मित्र’ जैसी पहलें इस पक्षी के संरक्षण में मददगार हैं। स्थानीय समुदाय की भागीदारी, घोंसलों की सुरक्षा और दीर्घकालिक संरक्षण योजनाएं इसकी संख्या को स्थिर बनाए रखने के लिए अनिवार्य हैं।
मानसून में पहाड़ी मैना का प्रजनन पहाड़ी मैना का प्रजनन काल मुख्यतः मानसून के मौसम में होता है, जब वातावरण अनुकूल और भोजन की प्रचुरता होती है। इस दौरान यह पक्षी अत्यधिक सक्रिय हो जाती है और अपने साथी के साथ घोंसला बनाने और अंडे देने की प्रक्रिया शुरू करती है।
150 से अधिक मैना मित्र कर रहे निगरानी नवीन कुमार, निदेशक कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान: वर्षाकाल पहाड़ी मैना के प्रजनन का समय होता है। ऐसे में उनके रहवास स्थानों पर 150 से अधिक मैना मित्र निगरानी कर रहे हैँ। आने वाले दिनों में इसका सार्थक परिणाम देखने को मिलेंगे।
Chhattisgarh Pahadi Myna: प्रजनन प्रक्रियाघोंसले का चयन: पहाड़ी मैना आमतौर पर पेड़ों के प्राकृतिक खोखलों या कटफोड़वा द्वारा बनाए गए छेदों को घोंसला बनाने के लिए चुनती है। घोंसला निर्माण: नर और मादा मिलकर टहनियों, पत्तियों और पंखों से घोंसले को सजाते हैं।
अंडे देना: प्रजनन काल में यह 2-3 अंडे देती है। अंडों की सुरक्षा: मादा अंडों पर बैठकर उन्हें सेती है, जबकि नर भोजन जुटाने का काम करता है। चूजों की देखभाल: लगभग 2-3 हफ्तों में अंडों से चूजे निकल आते हैं और दोनों माता-पिता उनकी देखभाल करते हैं।
मानसून क्यों होता है अनुकूल?
बारिश के मौसम में कीड़े-मकौड़ों और फलों की भरमार होती है, जिससे भोजन की उपलब्धता आसान हो जाती है। घने पत्तों वाले पेड़ों की वजह से घोंसलों की सुरक्षा और गोपनीयता बढ़ जाती है।
नमी और तापमान का संतुलन अंडों के लिए उपयुक्त होता है।
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