देश में आत्मनिर्भरता अभियान के तहत स्वदेशी हथियार निर्माण पहले से ही शुरू है, लेकिन अभी भी निर्माण, गुणवत्ता और आवश्यकताओं के बीच कई अहम खामियां बनी हुई हैं। जनरल चौहान ने यह तो नहीं कहा, लेकिन उनका संकेत स्पष्ट था कि भारत को भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए चीन के बराबर या उससे आगे निकलना होगा। यह सरकार और भारतीय रक्षा उद्योगों के लिए स्पष्ट संदेश है। उन्होंने खास तौर पर जोर दिया कि भारत को अपने स्वदेशी एंटी-यूएएस को अपग्रेड करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘ऐसे सिस्टम जो हमारे भूगोल और जरूरतों के अनुसार बने हों, बेहद जरूरी हैं। हमें इन पर निवेश करना होगा। विदेशी तकनीक पर निर्भरता हमारी तैयारियों को कमजोर करती है और दुश्मनों को बढ़त देती है।’
उनकी बातों को युद्ध के बदलते स्वरूप की नई वास्तविकताओं के संदर्भ में समझना होगा। टैंक और तोप जैसे पारंपरिक हथियार पुराने समय में हुई जंगों के लिए तो उपयोगी थे, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर ने यह दिखा दिया कि नई तकनीक कहीं अधिक प्रभावशाली और जरूरी है। इसलिए अब स्वदेशीकरण पर विशेष ध्यान और विस्तृत काम करने की जरूरत है। इसके लिए पहला कदम अनुसंधान और विकास को हर स्तर पर मजबूत करना होना चाहिए। दुर्भाग्य से यह अत्यंत आवश्यक क्षेत्र अब तक उपेक्षित रहा है। मोदी सरकार के तहत हाल के वर्षों में कुछ बड़े प्रयास जरूर हुए हैं, लेकिन सभी खामियां अब तक दूर नहीं हुईं। अगर भारत को अपने विरोधियों से आगे निकलना है तो अनुसंधान और विकास की रफ्तार को और तेज करना होगा।
बीते हथियारों को अपग्रेड करने की आवश्यकता तो हमेशा से समझी जाती रही है, लेकिन इसे ध्यान में तब लाया गया जब 6–7 मई की रात पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर ऑपरेशन सिंदूर चलाया गया। पाकिस्तान ने इस ऑपरेशन के जवाब में तनाव बढ़ाया, जिसके जवाब में भारत ने पारंपरिक और अत्याधुनिक दोनों तरीकों से कार्रवाई की और पाकिस्तान 10 मई को युद्धविराम की गुहार लगाने को मजबूर हुआ। भारत ने इस अनुरोध को स्वीकार किया, क्योंकि भारत का आतंकी ढांचों को ध्वस्त करने का उद्देश्य पूरा हो चुका था।
जनरल चौहान के अनुसार, इस ऑपरेशन में पाकिस्तान की रणनीति, उसके ड्रोन और यूएवी सभी निष्क्रिय कर दिए गए। यह निश्चित रूप से एक सफलता थी, लेकिन इससे यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि चुनौतियां समाप्त हो गई हैं। भविष्य में इनसे निपटने का एकमात्र रास्ता है — स्वदेशी हथियारों का निर्माण बढ़ाना और विदेशी उपकरणों पर निर्भरता घटाना।
स्वदेशी युद्ध तकनीक के साथ सबसे बड़ी ताकत यह है कि उसकी गोपनीयता बनी रहती है। आधुनिक युद्धों में तकनीक और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की भूमिका निर्णायक हो चुकी है। विदेशों से खरीदे गए उपकरणों में यह सुरक्षा नहीं रहती, क्योंकि विरोधी भी उनकी कमजोरियों और ताकतों को जानते हैं। जब गोपनीयता भंग होती है तो राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है।
यह मानना कि भविष्य में युद्ध नहीं होंगे, मात्र एक भ्रम है। दुनिया में वर्तमान में मध्य पूर्व, यूरोप, सीरिया, यमन जैसे कई क्षेत्रों में युद्ध जारी हैं और भारत को पाकिस्तान के साथ लगातार संघर्षों का अनुभव है। ऐसी स्थिति कभी भी उत्पन्न हो सकती है। जनरल चौहान ने स्पष्ट किया है कि भारत को पहले से ही पूर्ण रूप से तैयार रहना होगा। इसका अर्थ यह है कि सेना के पास आवश्यक हथियार और प्रशिक्षण पहले से मौजूद होना चाहिए।
हालिया संघर्ष में पाकिस्तान ने चीन के ड्रोन और विमान इस्तेमाल किए। यानी खतरा पाकिस्तान और चीन, दो तरफ से था। चूंकि पाकिस्तान के पास उच्च तकनीक वाले हथियार खुद बनाने की क्षमता नहीं है, इसलिए असल खतरा चीन के हथियारों से है।
स्वीडन स्थित थिंक टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, चीन अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार उत्पादक देश है और वह रूस से भी आगे है। हालांकि भारत अपनी जीडीपी का 1.9 प्रतिशत रक्षा पर खर्च करता है और चीन 1.5 प्रतिशत, लेकिन चीन की अर्थव्यवस्था (19.23 ट्रिलियन डॉलर) भारत (4.19 ट्रिलियन डॉलर) से लगभग पांच गुना बड़ी है। साथ ही, चीन ने 1979 में आर्थिक उदारीकरण के तुरंत बाद हथियार निर्माण शुरू कर दिया था, जबकि भारत ने यह प्रक्रिया 1991 से शुरू की।
आज चीन अमेरिका से टक्कर ले रहा है और उसका हथियारों का बाजार ग्लोबल साउथ समेत दुनियाभर में बन चुका है। भारत भी आगे बढ़ रहा है, लेकिन अभी भी चीन से कई कदम पीछे है। हमें चीन से मुकाबला करना होगा, वह भी स्वदेशी हथियारों के बल पर।