कितने हैं मेगालिथ और क्या है खासियत? लियानपुई गांव के मेगालिथिक स्थल की पुरावस्तुओं में 114 जटिल नक्काशीदार स्मारक पत्थर, शैलचित्र, वाई-आकार के लकड़ी के खंभे और प्राचीन रास्ते शामिल हैं, जिसे स्थानीय भाषा में ‘लुंगफुन रोपुई’ कहा जाता है। कुछ पत्थर सीधे खड़े हैं, जबकि कुछ सपाट (क्षैतिज) हैं, पर प्रत्येक का एक प्रतीकात्मक अर्थ है जो आदिवासी रीति-रिवाजों, अंत्येष्टि प्रथाओं और सामुदायिक स्मृति से जुड़ा है। इन पत्थरों पर इंसानों, जानवरों, हथियारों और आदिवासी प्रतीकों की नक्काशी है।
क्या मिजोरम में पहले भी कोई धरोहर है? वांगछिया गांव में स्थित ‘कवचुआ रोपुई’ मिजोरम का पहला मेगालिथिक स्थल था जिसे राष्ट्रीय महत्व के स्मारक का दर्जा मिला था। लियानपुई यह दर्जा पाने वाला राज्य का दूसरा स्थल है।
मेगालिथ से जुड़ी मिजो परंपराएं क्या हैं? मिजो समुदाय में मेगालिथ मृतकों की स्मृति, वीरता और सामाजिक प्रतिष्ठा दर्शाने के प्रतीक रहे हैं। इन पत्थरों पर मानव आकृतियों, पक्षियों, पशुओं, मिथुन सिरों, घंटियों, छिपकलियों और अन्य सांस्कृतिक रूपांकनों की विस्तृत नक्काशी है, जो ईसाई धर्म के आगमन से पहले मिजो लोगों की सांस्कृतिक प्रथाओं को दर्शाती हैं।
दुनिया में और कहां हैं मेगालिथिक स्थल? यूके के स्टोनहेंज यूके, फ्रांस के कार्नेक और भारत के कोकराझार जैसे मेगालिथिक स्थल प्रसिद्ध हैं। लियानपुई अपनी मौलिकता के कारण विशिष्ट है। यह अभी तक पर्यटकों से अछूता रहा है।
कब शुरू हुई थी प्रक्रिया, क्या पर्यटन बढ़ेगा? इसकी प्रक्रिया फरवरी 2021 में शुरू हुई थी। एएसआइ ने कई वर्षों के शोध और निरीक्षण के बाद प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल अधिनियम, 1958 के तहत लियानपुई के मेगालिथ को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया। यह कदम मिजोरम को सांस्कृतिक पर्यटन मानचित्र पर लाने में मददगार साबित होगा।
एक्स्ट्रा फैक्ट ………………… सबसे बड़े स्मारक पत्थर की ऊंचाई 1.87 मीटर (करीब 6.14 फुट) और चौड़ाई 1.37 (करीब 4.5 फुट) मीटर है। लियानपुई का नाम लुसेई प्रमुख लियानपुइया के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने कथित तौर पर 18वीं शताब्दी में इस गांव की स्थापना की थी।