एक दिन गांव के कु छ बच्चे भोला को अपने साथ खेलने ले गए। जब गंगा ने देखा कि उसका बछड़ा आसपास नहीं है, तो वह बेचैन हो उठी। वह पूरे गांव में उसे ढूंढने लगी। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। तभी बच्चों ने भोला को वापस लाकर गौरी के पास छोड़ दिया। गौरी ने उसे प्यार से चाटा और चैन की सांस ली। इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि मां का प्यार सबसे गहरा होता है। वह अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए कुछ भी कर सकती है। चाहे इंसान हो या जानवर मां का दिल एक जैसा ही होता है- प्रेम से भरा हुआ।
नव्या वर्मा, उम्र-11वर्ष
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गौरी और मोती की अनमोल दोस्ती
गांव के एक छोटे से हरे-भरे खेतों से घिरे कोने में एक गाय गौरी और उसका बछड़ा मोती रहते थे। गौरी दूध देने वाली गाय थी, शांत स्वभाव की और गांव के हर घर में उसके दूध की मिठास की चर्चा होती थी। मोती उसका छोटा और नटखट बछड़ा, अभी-अभी चलना सीख रहा था। उसकी हर हरकत में मासूमियत थी और उसकी आंखों में दुनिया को देखने की उत्सुकता झलकती थी। हर सुबह सूरज की किरणों के साथ गौरी और मोती खेतों की ओर निकलते।
गौरी आराम से घास चरती, जबकि मोती कभी तितलियों के पीछे दौड़ता, कभी अपने छोटे-छोटे पैरों से खेतों की मिट्टी में उछलता। उसका सबसे प्रिय खेल था और अपनी मां की पूंछ पकड़कर झूलना और जोर से रंभाना। एक दिन की बात है। गांव में मेले का आयोजन हुआ। सब गांव वाले वहां गए और गौरी को भी एक किसान अपने साथ ले गया क्योंकि मेले में पशु प्रदर्शनी थी। पर मोती छोटा था, उसे पीछे छोड़ दिया गया। गौरी ने जाते वक्तकई बार पीछे मुड़कर देखा, पर मोती तब तक एक पेड़ के नीचे खेल रहा था। शाम ढलते-ढलते गांव में आंधी आ गई। आसमान में काले बादल छा गए और बिजली चमकने लगी। मोती घबरा गया। मां की गैरमौजूदगी में वह कांपने लगा। उसने अपने छोटे-छोटे पांवों से खेत की ओर दौड़ना शुरू किया, यह सोचकर कि शायद मां वहीं होगी। इधर मेला खत्म होते ही जैसे ही आंधी तेज हुई, गौरी ने बंधी हुई रस्सी को झटके से खींचा और जोर से रंभाने लगी। उसके मालिक ने उसकी बेचैनी समझ ली और उसे खोल दिया। गौरी बिजली और आंधी की परवाह किए बिना, सीधे खेतों की ओर भागी। बीच रास्ते में ही उसकी मुलाकात मोती से हुई, जो रोते हुए मां को ढूंढ रहा था। मां और बेटे की वो मुलाकात जैसे प्रकृति ने खुद रोशनी में नहाई हुई थी। दोनों एक-दूसरे से लिपट गए। गौरी ने मोती को चाटकर चुप कराया और मोती उसकी गरम-गरम देह से लगकर फिर से शांत हो गया। आंधी अब रुक चुकी थी, बादल छंटने लगे थे और चांदनी जमीन पर उतर आई थी। उस रात के बाद मोती कभी अकेले नहीं रहता। गौरी जहां जाती, मोती वहीं होता। और गांव वाले कहते, ‘गौरी और मोती की जोड़ी तो मां-बेटे की मिसाल है। गांव के बच्चे उनकी कहानियां सुनकर बड़े होते और जब भी कोई दुखी होता, तो यही कहा जाता- जिसे गौरी और मोती की ममता ने छुआ, वह कभी अकेला नहीं रह सकता।
वेदांश दुबे, उम्र-9वर्ष
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हमें जिंदगी में जो चाहिए वह हमारे पास ही है
एक छोटे से गांव में एक गाय और उसका बछड़ा रहते थे। बछड़ा बहुत ही चंचल था और हमेशा नये-नये रास्ते खोजने की कोशिश करता था। गाय अपनी जान-पहचान में बहुत समझदार और शांत स्वभाव की थी। वह हमेशा बछड़े को समझाती रहती, ‘बेटा, अगर तुम कहीं दूर जाओगे तो रास्ता खो सकते हो और फिर मैं तुम्हें ढूंढने में बहुत परेशानी होगी। लेकिन बछड़े को यह बात कभी समझ नहीं आती थी। एक दिन उसने सोचा, ‘आज मैं एक नई दुनिया देखूंगा। बिना किसी को बताए वह गाय से दूर जंगल की ओर निकल पड़ा।
जंगल में बहुत सारी अद्भुत चीजें थीं, लेकिन बछड़े को अकेला महसूस होने लगा। उसे अपनी मां की याद आने लगी और उसे समझ में आया कि बिना मां के यह दुनिया कितनी अजनबी और डरावनी लगती है। काफी समय तक बछड़ा इधर-उधर भटकता रहा, लेकिन वह रास्ता नहीं खोज सका। अंत में वह थककर एक पेड़ के नीचे बैठ गया। तभी गाय वहां आई, उसकी आंखों में चिंता और प्यार था। गाय ने बछड़े को अपनी पीठ पर चढ़ाया और उसे वापस घर ले आई। उस दिन के बाद बछड़े ने सीखा कि कभी-कभी जिन्दगी में हमें जो चाहिए, वह हमारे पास ही होता है। और मां का साथ सबसे महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि वह हमें सही रास्ता दिखाती है। गाय और बछड़ा अब पहले से ज्यादा प्यार से एक साथ रहते थे और बछड़ा कभी भी मां से दूर नहीं जाता था।
सुदीक्षा कुलदीप, उम्र-11वर्ष
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गौरा और कान्हा की कहानी
एक बार की बात है, एक हरे-भरे मैदान में एक प्यारी गाय रहती थी, जिसका नाम गौरा था। गौरा बहुत ही दयालु और शांत स्वभाव की थी। उसका एक छोटा सा बछड़ा था, जिसका नाम कान्हा था। कान्हा अपनी मां के साथ खेलना और घूमना बहुत पसंद करता था। एक दिन, जब गौरा घास चर रही थी, कान्हा थोड़ा दूर निकल गया और एक छोटे से खड्डे में गिर गया। कान्हा डर गया और जोर-जोर से रंभाने लगा।
गौरा ने अपने बछड़े की आवाज सुनी और तुरंत उसकी ओर भागी। उसने देखा कि कान्हा खड्डे में फंसा हुआ है। गौरा ने अपनी पूरी ताकत लगाई और धीरे-धीरे कान्हा को खड्डे से बाहर निकालने में मदद की। कान्हा सुरक्षित बाहर आ गया और अपनी मां से लिपट गया। गौरा ने उसे प्यार से चाटा। उस दिन से कान्हा ने हमेशा अपनी मां के पास रहने का फैसला किया और कभी भी उससे ज्यादा दूर नहीं गया। गौरा और कान्हा खुशी-खुशी उस हरे-भरे मैदान में रहने लगे, जहां उनका अटूट प्रेम हमेशा बना रहा है।
मोहित सैनी, उम्र-13 वर्ष
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एक समय की बात है, एक हरे-भरे खेत में एक प्यारी गाय अपनी छोटी सी बछिया के साथ रहती थी। गाय का नाम गौरी था और उसकी बछिया का नाम लाली था। गौरी अपनी लाली से बहुत प्यार करती थी और हमेशा उसका ध्यान रखती थी। हर सुबह, गौरी और लाली खेत में चरने जाती थीं। लाली बहुत चंचल थी और नई-नई चीजें सीखना पसंद करती थी। गौरी उसे सिखाती थी कि सबसे अच्छी घास कहां मिलती है और कैसे सुरक्षित रहना है। एक दिन, लाली थोड़ी दूर निकल गई। गौरी ने उसे आवाज दी, ‘लाली, दूर मत जाओ! लेकिन लाली खेल में इतनी मग्न थी कि उसने सुना नहीं।
तभी एक तेज हवा का झोंका आया और लाली डर गई। वह अपनी मां को ढूंढने लगी, लेकिन उसे गौरी कहीं दिखाई नहीं दी। लाली रोने लगी। गौरी ने लाली की आवाज सुनी और तुरंत उसकी तरफ भागी। जब गौरी लाली के पास पहुंची, तो लाली अपनी मां को देखकर बहुत खुश हुई और उनसे लिपट गई। गौरी ने लाली को प्यार से सहलाया और समझाया कि हमेशा अपनी मां के पास रहना कितना जरूरी है। उस दिन के बाद, लाली कभी अपनी मां से दूर नहीं गई। वे दोनों हमेशा साथ रहीं और खुशी-खुशी जीवन बिताया। इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा अपने बड़ों की बात माननी चाहिए और अपने परिवार के करीब रहना चाहिए।
शिवांगी सुथार, उम्र-13 वर्ष
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गाय और बछड़ा
एक खेत में एक गाय रहती थी। उसका नाम था गौरी। गौरी का एक छोटा बछड़ा था। उसका नाम था मोती। गौरी मोती से बहुत प्यार करती थी। वे रोज साथ में घास खाते और खेलते थे। एक दिन मोती खेलते-खेलते खेत से दूर चला गया। वहां बहुत पेड़ थे। मोती डर गया और रोने लगा। गौरी ने जब मोती को पास नहीं देखा, तो वह भी घबरा गई।
गौरी भी रोने लगी। वह बोली, ‘मोती, तुम कहां हो बेटा? गौरी इधर-उधर दौड़ने लगी। अचानक उसे मोती की आवाज सुनाई दी। वह जल्दी से वहां गई और मोती को गले लगा लिया। मोती भी बहुत खुश हुआ। उसने कहा, ‘मां, अब मैं कभी दूर नहीं जाऊंगा। गौरी मुस्कुराई और बोली, ‘तुम मेरे लिए सबसे प्यारे हो। अब वे दोनों साथ-साथ खुश रहते हैं।
यशिता सावलानी,उम्र-6 वर्ष