अहिल्या बाई से महाराणा प्रताप तक
मैंने अहिल्या बाई, नरेंद्र मोदी, शिवाजी, महाराणा प्रताप और कामाख्या माता सहित जैसी सैकड़ों कलाकृतियां बनाई हैं। ये कृतियां न केवल मेरी कला को दर्शाती हैं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को भी जीवित रखती हैं। प्रत्येक कृति मेरे लिए एक कहानी है, जो इतिहास और संस्कृति से जुड़ी है।
पराली का उपयोग और पर्यावरण
लोग घास को कमजोर समझते हैं, लेकिन यह बेहद मजबूत होती है। इसे मसलने या पत्थर से दबाने पर भी यह फिर उग आती है। मेरे लिए घास अमरता का प्रतीक है। मैं पराली के उपयोग को भी बढ़ावा देता हूं। पंजाब में पराली जलाने की समस्या आम है, लेकिन इसका उपयोग डिस्पोजेबल सामान बनाने में किया जा सकता है। एक छोटा सा प्लांट लगाकर किसान न केवल पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि अतिरिक्त आय भी कमा सकते हैं।
आदिवासी समाज को मुख्यधारा में लाना
मेरा सपना था कि घास की कला को विरासत का दर्जा दिलाऊं, जो अब पूरा हो चुका है। अब मेरा लक्ष्य आदिवासी समाज को मुख्यधारा से जोडऩा और उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान करना है। मैंने देश भर में अपनी कृतियों की प्रदर्शनियां लगाई हैं और इस कला को वैश्विक मंच पर ले जाने का प्रयास कर रहा हूं। मेरा युवाओं को संदेश है जिस काम में दिल लगता है, वही करो। जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन उनसे सीखकर आगे बढऩा ही असली जीत है।