क्या कहते हैं आंकड़े?
जून 2025 तक, भारत में 142.39 करोड़ आधार धारक दर्ज हैं, जबकि संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के अनुसार, अप्रैल 2025 में देश की कुल जनसंख्या 146.39 करोड़ थी। सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (CRS) के आंकड़ों के मुताबिक, 2007 से 2019 के बीच भारत में हर साल औसतन 83.5 लाख मौतें दर्ज की गईं। इस हिसाब से, 14 सालों में लगभग 11.69 करोड़ लोगों की मृत्यु हुई, लेकिन UIDAI ने इनमें से केवल 1.15 करोड़ आधार नंबर ही निष्क्रिय किए। यह कुल अनुमानित मृतकों का मात्र 10% है।
क्यों हो रही है देरी?
UIDAI ने आरटीआई में बताया कि मृतकों के आधार नंबर निष्क्रिय करने की प्रक्रिया जटिल है और यह रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (RGI) से प्राप्त मृत्यु रिकॉर्ड पर निर्भर करती है। UIDAI के अनुसार, “जब RGI मृत्यु रिकॉर्ड और आधार नंबर की जानकारी साझा करता है, तब UIDAI उचित प्रक्रिया के बाद मृतक आधार धारकों के आधार नंबर को निष्क्रिय करता है।” हालांकि, 2022 में UIDAI ने RGI से मृत्यु रिकॉर्ड साझा करने का अनुरोध किया था, जिसके तहत 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से लगभग 1.55 करोड़ मृत्यु रिकॉर्ड प्राप्त हुए, जिनमें से 1.17 करोड़ आधार नंबर निष्क्रिय किए गए।
नई गाइडलाइंस
इस अंतर को कम करने के लिए, UIDAI ने अगस्त 2023 में निष्क्रियकरण के लिए संशोधित दिशानिर्देश जारी किए। इसके तहत, मृत्यु रिकॉर्ड को आधार डेटा के साथ कम से कम 90% नाम और 100% लिंग मिलान के आधार पर सत्यापित किया जाता है। इसके अलावा, UIDAI ने हाल ही में “परिवार के सदस्य की मृत्यु की रिपोर्टिंग” नामक एक नई सुविधा शुरू की है, जिससे लोग स्वेच्छा से मृत्यु की जानकारी अपडेट कर सकते हैं। साथ ही, UIDAI API-आधारित एकीकरण के लिए तकनीकी बुनियादी ढांचा विकसित कर रहा है ताकि मृत्यु रिकॉर्ड का रीयल-टाइम साझाकरण संभव हो।
बिहार में 100% से ज्यादा आधार सैचुरेशन
इस डेटा असमानता का प्रभाव बिहार जैसे राज्यों में स्पष्ट दिखाई देता है। हाल के विशेष सारांश संशोधन (SSR) के दौरान, बिहार के सीमांचल क्षेत्र के कई जिलों—किशनगंज (126%), कटिहार और अररिया (123%), पूर्णिया (121%), और शेखपुरा (118%)—में आधार सैचुरेशन 100% से अधिक दर्ज किया गया। इसका एक प्रमुख कारण मृतकों के आधार नंबरों का निष्क्रिय न होना है, जो स्थानीय जनसंख्या आंकड़ों को बढ़ा देता है।
क्या है खतरा?
मृतकों के आधार नंबरों के सक्रिय रहने से पहचान की चोरी, सरकारी योजनाओं में धोखाधड़ी, और फर्जी वोटरों के पंजीकरण जैसे जोखिम बढ़ सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि आधार डेटाबेस और मृत्यु पंजीकरण के बीच समन्वय की कमी इस समस्या का मूल कारण है।
विश्वसनीयता पर सवाल
UIDAI का कहना है कि वह इस समस्या को हल करने के लिए तकनीकी समाधान विकसित कर रहा है। हालांकि, विशेषज्ञों का सुझाव है कि मृत्यु पंजीकरण प्रक्रिया को और मजबूत करने और आधार डेटाबेस को नियमित रूप से अपडेट करने की आवश्यकता है। इस खुलासे ने न केवल आधार की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि सरकार से इस दिशा में तत्काल कदम उठाने की मांग को भी तेज कर दिया है।