बता दें कि कहीं 36 मसालों का खूबसूरत मिश्रण होता है तो कहीं बस डामर-रोड़ी के तय अनुपात पर फोकस किया जाता है। यानी जितना गुड़ उतना मीठा। परिणाम भी उसी तरह के मिलते हैं। बारिश के बाद भी शहर की कई सड़कें टिकी रहती हैं। उन पर पानी गिरता है और बह जाता है। वहीं, आमजन की सड़कें पानी के साथ बह जाती हैं। रह जाता है तो केवल कंकड़-पत्थर का एहसास। यहां रोज लोग गिरते-भिड़ते हैं और निकल जाते हैं।

बड़ा सवाल यह है कि जब दोनों सड़कें लोगों के चलने के लिए बन रही हैं तो ये भेद क्यों। वैसे शहर की सड़कों को देखकर लगता है कि जेडीए, नगर निगम और आवासन मंडल ने सड़कों को वीआईपी और सामान्य श्रेणी में बांट रखा है। तभी तो जेएलएन मार्ग से लेकर जनपथ और सिविल लाइंस में सड़कें चकाचक नजर आती हैं। वहीं, सामान्य लोगों की सड़कों पर चलना खतरे से खाली नहीं है। कहीं सीवर लाइन की वजह से सड़क धंस गई तो कहीं छह महीने पहले बनी सड़क उखड़ गई।
200 करोड़ खर्च कर मरम्मत
मानसून के बाद सड़कों की मरम्मत पर काम शुरू होता है। एक अनुमान के मुताबिक, 200 करोड़ रुपए सड़कों को सही करने में खर्च होते हैं। कहीं पेचवर्क होता है तो कहीं सड़कों को नया ही बनाना पड़ता है।
गुणवत्ता पूरी, निकासी का इंतजाम भी
खास सड़कों में शामिल जेएलएन मार्ग, जनपथ, महल रोड, गांधी पथ, पीवीसी कर्नल होशियार सिंह मार्ग, सहकार मार्ग, एयरपोर्ट के आसपास की सड़कें, भगवान दास मार्ग और महात्मा गांधी रोड नहीं टूटतीं। यहां गुणवत्ता भी ऐसी होती है कि कई सड़कों को तो बने हुए पांच से सात वर्ष हो चुके यानी डिफेक्ट लायबिलिटी पीरियड भी पूरा हो चुका है। इसके बाद सभी सड़क नहीं टूटी।
सड़कें चकाचक, एक भी गड्ढा नहीं
करीब 8 किमी के जेएलएन मार्ग पर एक भी गड्ढा नजर नहीं आता। दोनों ओर बने ड्रेनेज सिस्टम से पानी निकासी बेहतर नजर आती है। महात्मा गांधी रोड पर बरसात के साथ ही निकासी होती रहती है। वैशाली नगर के कर्नल होशियार सिंह मार्ग और गांधी पथ से लेकर अन्य प्रमुख सड़कों की स्थिति भी बरसात के दिनों में जस की तस बनी रहती है।
अभी ये हो रहा उपयोग
पॉलीमर मॉडिफाइड बिटुमेन (पीएमबी) 3800 रुपए मीट्रिक टन है। इसका उपयोग जेएलएन मार्ग, महल रोड से लेकर अजमेर रोड की एलिवेटेड पर भी किया गया है। शहर की ज्यादातर सड़कें वीटी-30 डामर में बनाई जाती हैं। जलभराव के दौरान ये सड़कें टूट जाती हैं।
दबाव नहीं, फिर भी टूट रहीं
कॉलोनियों की सड़कों में ट्रैफिक का दबाव नहीं होता। इसके बावजूद सड़कें क्षतिग्रस्त हो रही हैं। इंजीनियरिंग विंग के अधिकारी मानते हैं कि निकासी न होने की वजह से सड़कें टूटती हैं।
यहां सड़कों का बुरा हाल
पृथ्वीराज नगर उत्तर और दक्षिण क्षेत्र में सड़कों का बुरा हाल है। कई कॉलोनियों में सड़क तलाशने पर भी नहीं मिलेगी। रही-सही कसर जलभराव ने पूरी कर दी है। इसके अलावा राजापार्क, परकोटे की कुछ गलियां भी निगम ने मानसून से पहले खोद दीं, इनको अब तक सही नहीं किया है। सड़कों पर जलभराव होगा तो वे क्षतिग्रस्त होंगी। जो सड़कें बारिश में खराब नहीं होती, उनके बगल में ड्रेनेज होगा या फिर सड़क का स्लोप बेहतर होने से पानी सड़क से उतर जाता है।
-निर्मल गोयल, सेवानिवृत्त एक्सईएन