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तलाक में Wife से इस तरह संपत्ति बचा रहे अमीर, अब मिडिल क्लास तक पहुंचा तरीका

Wife’s Share in Property: तलाक होने की स्थिति में पति को अपनी संपत्ति में से पत्नी को भी हिस्सा देना होता है। अमीर लोग इससे बचने के लिए कई तरीके अपनाते हैं।

भारतJul 21, 2025 / 01:10 pm

Pawan Jayaswal

Wife's share in property

भारत में शादी से पहले होने वाले समझौते कानूनी तौर पर मान्य नहीं हैं। (PC: Pixabay)

भारत में शादी से पहले होने वाले समझौते (प्री-नुपिटल एग्रीमेंट) कानूनी तौर पर मान्य नहीं हैं। इसलिए अमीर लोग शादी टूटने पर होने वाले नुकसान से बचने के लिए नए तरीके खोज रहे हैं। देश में तलाक खासकर हाई प्रोफाइल डायवोर्स के बढ़ते मामलों को देखकर अमीर घराने प्राइवेट फैमिली डिस्क्रेशनरी ट्रस्ट बना रहे हैं। दिल्ली के एक कपड़ा निर्यातक ने बताया कि उनके बेटे की शादी जल्दी ही टूट गई। उन्होंने कहा, ट्रस्ट बनाने की वजह से शादी से पहले ही हमने बेटे के कारोबार और पारिवारिक घर को सुरक्षित कर लिया था। इसी तरह, मुंबई के एक जौहरी ने अपनी सारी प्रॉपर्टी एक ट्रस्ट में डाल दी और बेटे को इसका लाभार्थी बना दिया। जब बेटे ने तलाक के लिए अर्जी दी तो पत्नी उन संपत्तियों पर कोई दावा नहीं कर सकी, जिन्हें वह कभी अपना समझती थी।

इक्विटी ट्रांसफर सख्त कर रहे

व्यावसायिक घराने गैर-पारिवारिक सदस्यों को इक्विटी ट्रांसफर पर सख्त सीमाएं लगा रहे हैं। वे अपने फैमिली एग्रीमेंट में यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि डायवोर्स के कारण सेटलमेंट के लिए शेयर ट्रांसफर करने की स्थिति में शेयरों को सबसे पहले मौजूदा शेयरधारकों या कंपनी को पेश किया जाए। लॉ फर्म सिरिल अमरचंद मंगलदास के ऋषभ श्रॉफ ने कहा, मजबूत सुरक्षा के बिना शेयरधारक का तलाक व्यावसायिक होल्डिंग्स पर दावों को जन्म दे सकता है, कॉर्पोरेट प्रशासन को बाधित कर सकता है और स्वामित्व को कमजोर कर सकता है, जिससे पीढिय़ों से बनी फर्मों की स्थिरता को खतरा हो सकता है।

क्या है इस ट्रस्ट का मतलब?

इनहेरिटेंस नीड्स सर्विसेज के फाउंडर रजत दत्ता कहते हैं कि ट्रस्ट का मतलब है कि यह ट्रस्टी के जरिए लाभार्थियों के हितों की रक्षा करता है। अगर कोई कर्जदार बैंक का पैसा नहीं चुका पाता है, तो ट्रस्ट में रखी संपत्ति को बैंक जब्त नहीं कर सकता, भले ही कर्जदार ट्रस्टी हो और लाभार्थी भी। इसका मतलब है कि ट्रस्ट एक तरह से संपत्ति को बचाने का काम करता है। एवेंडस वेल्थ मैनेजमेंट के आश्विनी चोपड़ा ने बताया, कई परिवार बेटों को शादी के बाद होने वाले वित्तीय जोखिमों से बचाने के लिए ट्रस्ट बना रहे हैं। ट्रस्ट को इस तरह से बनाया जाता है कि कानूनी तौर पर बेटे के नाम पर कोई संपत्ति नहीं होती है। वह सिर्फ लाभार्थी होता है। इससे तलाक होने पर संपत्ति पर दावा करने का स्कोप कम हो जाता है।

मिडिल क्लास तक पहुंचा तरीका

एक्सपर्ट्स का कहना है कि अब ट्रस्ट डीड को तलाक को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा है। पहले इसका मकसद सिर्फ विरासत को संभालना होता था। पहले यह तरीका सिर्फ अमीर लोग ही अपनाते थे, लेकिन अब मिडिल क्लास के लोग भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। वे अपनी कमाई को सुरक्षित रखना चाहते हैं और परिवार को कानूनी लड़ाई से बचाना चाहते हैं, खासकर तलाक के मामले में। ट्रस्ट महिलाओं को भी सुरक्षा देता है। एक वकील ने बताया कि एक महिला अपने पति से अपनी संपत्ति को बचाने में कामयाब रही, क्योंकि वह ट्रस्ट में थी। यह ट्रस्ट उसके पिता ने अपनी बेटी और उसके बच्चों के लिए बनाया था।

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