30 बीघा भूमि मंदिर की ख्याति सुनकर मेवाड़ महाराणा ने भगवान के दर्शन कर भगवान की सेवा पूजा के सर्व कार्य के लिए 30 बीघा भूमि महाराणा जगत सिंह ने भेंट की। हरि पुरी को संवत् 1141 में उक्त भूमि का ताम्र पत्र वैशाख शुक्ला तीज सोमवार को दिया। यह जागीरी इसी मन्दिर के पूर्व एवं दक्षिण दिशा में है जो मंदिर से मिली हुई है।
जिंदा समाधि वैशाख शुक्ला अक्षय तृतीया संवत् 1201 में हरि पुरी ने जिन्दा समाधि ली जिनकी समाधि उनके बाद शिष्य चन्दनपुरी तपस्वी संत थे । नीलकण्ठ महादेव ने उन्हे भी स्वप्न दर्शन देकर कहा कि इसी मंदिर के पश्चिम दिशा में भूमि के अन्दर गंगाजी की अटूट धारा है, सो तुम यहाँबावड़ी का निर्माण करवाओ। चन्दनपुरी ने बावड़ीखुदवाकर उसकी प्रतिष्ठा संवत् 1230 में वैशाख शुक्ला अक्षय तृतीया को की और उसी बावड़ी के जल से अनवरत भगवान का अभिषेक अभी तक भी किया जाता है। मेजा ग्राम के महन्त शंकर पुरी के निधन के बाद संवत् 2067 में ग्रामीणो ने सरसड़ी आश्रम से महन्त दीपकपुरी को चादर ओढ़ाकर मन्दिर की महन्ताई प्रदान की गई। महन्त दीपकपुरी की महन्ताई के पश्चात नीलकण्ठ महादेव मन्दिर परिसर के विकास में तीव्र गति से होने लगा।