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भीलवाड़ा

सावन का सत्कार: कुटिया के नीचे भूमि से निकले ‘नीलकंठ’

भीलवाड़ा जिले के माण्डल कस्बे के बस स्टैंड पर स्थित नीलकण्ठ महादेव मंदिर ग्रामीणों की आस्था का केंद्र

भीलवाड़ाJul 15, 2025 / 08:40 am

Suresh Jain

Sawan's welcome: 'Neelkanth' emerged from the ground under the hut

Sawan’s welcome: ‘Neelkanth’ emerged from the ground under the hut

भीलवाड़ा जिले के माण्डल कस्बे के बस स्टैंड पर स्थित नीलकण्ठ महादेव मन्दिर ग्रामीणों की आस्था का केंद्र बिंदु है । यहां सावन मास में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है । पूरे सावन मास में नित्य शिवलिंग का अलौकिक शृंगार किया जाता है । नित्य सुबह व शाम को आरती की जाती है । नीलकण्ठ महादेव की प्रतिमा स्वयंभू है। विक्रम संवत् 1110 में एक सिद्ध महात्मा हरि पुरी थे। जिनका आश्रम वर्तमान जहां मन्दिर है वहा था। हरिपुरीवहाँ एक कुटिया बनाकर तपस्या कर रहे थे। एकदिन भगवान शंकर ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर कहा जहां तू बैठकर तपस्या कर रहा है, उसी कुटिया के नीचे भूमि में मैं प्रतिमा के रूप में मौजूद हूं। तुम मेरी प्रतिमा को बाहर निकाल कर मेरी स्थापना करो। मेरी प्रतिमा का आकार अनगढ़ है और मैं नीले रंग का हूँ। उसी वक्त महात्मा का स्वप्न समाप्त हो गया और जाग्रत अवस्था में आ गए। सुबह भूमि को खुदवा कर भगवान को निकाला एवं उसी वर्ष भगवान नीलकण्ठ के नाम से मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा संवत् 1110 में शिवरात्रि के दिन करवाई।
30 बीघा भूमि

मंदिर की ख्याति सुनकर मेवाड़ महाराणा ने भगवान के दर्शन कर भगवान की सेवा पूजा के सर्व कार्य के लिए 30 बीघा भूमि महाराणा जगत सिंह ने भेंट की। हरि पुरी को संवत् 1141 में उक्त भूमि का ताम्र पत्र वैशाख शुक्ला तीज सोमवार को दिया। यह जागीरी इसी मन्दिर के पूर्व एवं दक्षिण दिशा में है जो मंदिर से मिली हुई है।
जिंदा समाधि

वैशाख शुक्ला अक्षय तृतीया संवत् 1201 में हरि पुरी ने जिन्दा समाधि ली जिनकी समाधि उनके बाद शिष्य चन्दनपुरी तपस्वी संत थे । नीलकण्ठ महादेव ने उन्हे भी स्वप्न दर्शन देकर कहा कि इसी मंदिर के पश्चिम दिशा में भूमि के अन्दर गंगाजी की अटूट धारा है, सो तुम यहाँबावड़ी का निर्माण करवाओ। चन्दनपुरी ने बावड़ीखुदवाकर उसकी प्रतिष्ठा संवत् 1230 में वैशाख शुक्ला अक्षय तृतीया को की और उसी बावड़ी के जल से अनवरत भगवान का अभिषेक अभी तक भी किया जाता है। मेजा ग्राम के महन्त शंकर पुरी के निधन के बाद संवत् 2067 में ग्रामीणो ने सरसड़ी आश्रम से महन्त दीपकपुरी को चादर ओढ़ाकर मन्दिर की महन्ताई प्रदान की गई। महन्त दीपकपुरी की महन्ताई के पश्चात नीलकण्ठ महादेव मन्दिर परिसर के विकास में तीव्र गति से होने लगा।

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