स्वास्थ्य और स्वच्छता पर भी संकट
संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के अनुसार, गाजा में बुनियादी ढांचा लगभग नष्ट हो चुका है। लाखों लोगों को न तो स्वच्छ पानी मिल रहा है और न ही सही तरीके की सफाई व्यवस्था। लोग टैंकर से लाए गए पानी से डिब्बे भरने को मजबूर हैं। गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि केवल बीते 24 घंटे में भूख और कुपोषण से 10 लोगों की जान जा चुकी है।
बमबारी और युद्ध का असर
लगभग दो साल से जारी युद्ध के बीच इजरायल की हवाई कार्रवाई अब भी जारी है। हाल ही में हुए एक हमले में कम से कम 10 लोगों की जान चली गई, जिनमें बच्चे भी शामिल थे।
शांति वार्ता और युद्ध विराम की कोशिशें
अमेरिका के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ जल्द ही गाजा में युद्धविराम के प्रयासों को लेकर यूरोप और कतर का दौरा करेंगे। इसका उद्देश्य है कि किसी तरह से बातचीत के जरिए संघर्ष विराम हो और मानवीय सहायता बहाल की जा सके।
वैश्विक स्तर पर नाराज़गी और चिंता
गाजा में भुखमरी और निर्जलीकरण की स्थिति पर वैश्विक स्तर पर नाराज़गी और चिंता जताई जा रही है। मानवाधिकार संगठनों, यूएन एजेंसियों और मध्यपूर्व विशेषज्ञों का कहना है कि इस संकट को “राजनीतिक बहस” नहीं, बल्कि “मानवीय त्रासदी” के रूप में देखना चाहिए। इजरायल पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है कि वह नाकेबंदी हटाकर मानवीय सहायता को अबाध रूप से पहुंचने दे।
सुरक्षा परिषद की बैठक हो सकती है
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद आने वाले दिनों में गाजा की स्थिति पर विशेष बैठक बुला सकती है।अमेरिकी विशेष दूत स्टीव विटकॉफ की कतर और यूरोप यात्रा से उम्मीद है कि युद्धविराम वार्ता को गति मिलेगी। WHO और WFP जैसी संस्थाएं अब “सीधे हवाई मार्ग से सहायता भेजने” के विकल्पों पर विचार कर रही हैं।
सरकार की रणनीति पर सवाल उठाए
इजरायली मीडिया में भी अब इस विषय पर मतभेद सामने आ रहे हैं – कुछ विश्लेषकों ने सरकार की रणनीति पर सवाल उठाए हैं। मानवीय सहायता में तकनीकी बाधाएं
ड्रोन, ट्रैकिंग सिस्टम, और ब्लॉकचेन आधारित राहत वितरण पर चर्चा शुरू हो गई है।
सहायता न मिलने पर मनोवैज्ञानिक असर
लंबे युद्ध और भूख से गुजर रहे बच्चों पर PTSD और मानसिक बीमारी के मामलों में तेजी आ गई है। सैन्य-राजनीतिक विश्लेषण
क्या इजरायल की नाकेबंदी हमास को कमजोर कर रही है या आम लोगों को निशाना बना रही है?
राजनीतिक दलों पर रुख बदलने का दबाव
अमेरिका और यूरोप के मुस्लिम मतदाताओं में नाराज़गी बढ़ने के कारण राजनीतिक दलों पर रुख बदलने का दबाव हो सकता है।