सत्यजीत रे के पैतृक घर का विध्वंस: एक दुखद घटना
जुलाई 2025 में, महान फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे के पैतृक घर को बांग्लादेश के मैमनसिंह में ध्वस्त करना दुखद है। अधिकारियों ने कहा कि इसे उचित अनुमति के बाद किया गया है। हालांकि, ढाका के पुरातत्व विभाग ने सुरक्षा के लिए कई बार अनुरोध किया था, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया गया। भारत ने इस ऐतिहासिक भवन की मरम्मत में मदद की पेशकश की है, ताकि यह बंगाली संस्कृति का महत्वपूर्ण प्रतीक बना रहे।
टैगोर और मुजीबुर रहमान के घरों की अनदेखी
बांग्लादेश के संस्थापक राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान के पैतृक घर के एक हिस्से को फरवरी 2025 में ध्वस्त कर दिया गया। इसी तरह, जून में रवींद्रनाथ टैगोर के पैतृक घर में एक मामूली विवाद के बाद संग्रहालय को नुकसान पहुंचाया गया। ये घटनाएं बांग्लादेश में सांस्कृतिक विरासत के प्रति उपेक्षा दर्शाती हैं।
भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव बढ़ा
ढाका में सत्ता परिवर्तन के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्ते खराब हुए हैं। भारत ने हिंदी भाषी अल्पसंख्यकों पर हमलों की बात उठाई, जबकि बांग्लादेश ने भारत से अपने आंतरिक मामलों में दखल न देने की मांग की। सन 1971 के आजादी के युद्ध में भारत के समर्थन के बावजूद यह तनाव दोनों देशों के बीच लंबे समय से चल रहे सहयोग को प्रभावित कर रहा है।
सांस्कृतिक विरासत का महत्व और साझा इतिहास
भारत-बांग्लादेश के बीच 1947 में विभाजन से पहले बंगाल की सांस्कृतिक एकता मजबूत थी। बंगाली संगीत, साहित्य और सिनेमा ने दोनों देशों के लोगों को जोड़ रखा था। सत्यजीत रे, टैगोर और मुजीबुर रहमान जैसे दिग्गज इस सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं, जिनकी उपेक्षा से यह साझा इतिहास खतरे में पड़ सकता है।
ममता बनर्जी का बयान: सांस्कृतिक संरक्षण की अपील
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि सत्यजीत रे का घर बंगाली संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने बांग्लादेश सरकार से इस विरासत को बचाने की अपील की है। साथ ही भारत सरकार से भी इस मुद्दे पर ध्यान देने का आग्रह किया है।
बांग्लादेश में राजनीतिक और सांस्कृतिक बदलाव
शेख हसीना सरकार के जाने के बाद बांग्लादेश में राजनीतिक हालात बदले हैं। सन 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं के परिवारों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की नीति के खिलाफ युवा वर्ग में विरोध हुआ। इस राजनीतिक संघर्ष ने देश के सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण पर भी असर डाला है।
क्या बांग्लादेश में इस्लामवाद बढ़ रहा है ?
अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर हमलों की खबरें और जमात-ए-इस्लामी का पुनः राजनीतिक मंच पर आना यह संकेत देता है कि देश में इस्लामी कट्टरपंथ मजबूत हो रहा है। हालांकि संविधान में धर्मनिरपेक्षता का उल्लेख है, फिर भी इस्लाम को राजकीय धर्म मान्यता प्राप्त है, जो राजनीतिक और सामाजिक तनाव का कारण बन सकता है।
बांग्लादेश का भविष्य: धर्मनिरपेक्षता और बहुलवाद के बीच संघर्ष
बांग्लादेश में राष्ट्रीय सहमति आयोग ने बहुसंख्यक धर्म के साथ अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर चर्चा की है। लगभग 38 राजनीतिक दलों ने बहुलवाद के बजाय धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने की बात कही है। इस विषय पर देश में व्यापक बहस जारी है और भविष्य में बांग्लादेश के सामाजिक और सांस्कृतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकती है।