प्रेमा साईं जी महराज से लिया दीक्षा ओडिशा पहुंचकर उन्होंने गुरुदेव से दीक्षा ली और तप, साधना, सेवा व आत्म-परिवर्तन के मार्ग पर चल पड़े। बीते चार वर्षों में उन्होंने चार धाम और बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन पूरे किए। लेकिन यह यात्रा केवल मंदिरों तक सीमित नहीं थी — यह उनकी आत्मा की पुनर्यात्रा थी।
शिवानंद नीलांचली के नाम से जाना जाएगा हबीब अब वे ‘शिवानंद नीलांचली’ के नाम से जाने जाते हैं — यह नाम उन्हें गुरु पूर्णिमा 2025 के दिन मां कामाख्या की भूमि पर गुरुदेव द्वारा प्रदान किया गया। उनका कहना है कि अब वे पूरी तरह सनातन धर्म के लिए समर्पित हैं, और जीवनभर साधना और सेवा में लगे रहना चाहते हैं।