CG Train News: आप भी जानिए…
रेलवे ने बताया कि उरकुरा से
सरोना के बीच कुल 52 डिटेक्शन पॉइंट्स और 48 ट्रैक सेक्शन लगाए गए हैं। इससे ट्रेन की स्थिति रीयल टाइम में ट्रैक की जाती है। साथ ही 10 ऑटोमैटिक सिग्नल, ऑटो हट में रिंग अर्थिंग, ए-क्लास सुरक्षा, फायर अलार्म, ईएलडी और स्वचालित यूज चेंज ओवर सिस्टम जैसी आधुनिक संरक्षा व्यवस्थाएं भी लगाई गई हैं।
ऑटोमैटिक सिग्नलिंग का काम पूरा होने से दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में ट्रेनों की लेटलतीफी की समस्या से काफी हद तक निजात मिलेगी। इस प्रणाली से ट्रेनों की फ्रीक्वेंसी भी बढ़ेगी। एक ही दिशा में जा रही दो ट्रेनों के बीच की दूरी भी कम होगी। ऑटोमैटिक सिग्नलिंग प्रणाली से ट्रेनों के आपस में टकराने का खतरा भी कम होगा।
ऐसे काम करता है ऑटोमैटिक सिग्नलिंग
रेलवे में ऑटोमैटिक सिग्नलिंग एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें ट्रेनों की आवाजाही को स्वचालित रूप से नियंत्रित किया जाता है। यह प्रणाली दो स्टेशनों के बीच के ट्रैक को कई ब्लॉकों में विभाजित करती है और प्रत्येक ब्लॉक में एक स्वचालित सिग्नल लगा होता है। जब एक ट्रेन किसी ब्लॉक में प्रवेश करती है, तो वह सिग्नल लाल हो जाता है और जब ट्रेन ब्लॉक से बाहर निकलती है, तो सिग्नल हरा हो जाता है। इससे एक ही ट्रैक पर एक से अधिक
ट्रेनों को सुरक्षित रूप से संचालित करना संभव होता है, जिससे लाइन की क्षमता बढ़ जाती है। इसके उपयोग से रेलवे ट्रेनों की गति को बढ़ा रहा है। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे बिलासपुर जोन के तीनों मंडलों में कई सेक्शन में रेलवे ने ट्रेनों की गति सीमा को बढ़ाया है। कई जगह ट्रेनें 130 किमी प्रतिघंटे की रतार से चल रही हैं।
ऐसे समझें… ऑटोमैटिक सिग्नलिंग प्रणाली को
मान लीजिए कि दो स्टेशन के बीच की दूरी 10 किलोमीटर है। पारंपरिक प्रणाली में एक ट्रेन के स्टेशन से निकलने के बाद दूसरी ट्रेन को 10-12 मिनट बाद ही भेजा जा सकता है, जब तक कि पहली ट्रेन अगले स्टेशन पर न पहुंच जाए। वहीं ऑटोमैटिक सिग्नलिंग प्रणाली में एक ही रूट पर एक किलोमीटर के अंतर पर एक के बाद एक ट्रेनें चलाई जा सकती हैं, जिससे समय और संसाधनों की बचत होती है।