ज्यादा उत्पादन के लालच में बेहिसाब यूरिया का इस्तेमाल
कृषि वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर करते हुए किसानों को संयमित उपयोग करने की सलाह दी है। किसानों को मक्का, सोयाबीन सहित अन्य फसलों में एक एकड़ में दो बोरी यूरिया की जरूरत है। वे ज्यादा उत्पादन के लालच में बेहिसाब 5-6 बोरी तक इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे पौधे की ग्रोथ समय से ज्यादा होने पर फसल लेट रही है। फसल की लागत भी दोगुनी हो रही है। यूरिया के इस्तेमाल से केवल नाइट्रोजन और डीएपी से नाइट्रोजन, फासफोरस की पूर्ति होती है। पोटाश, जिंक की कमी बनी रहती है। वैज्ञानिकों के अनुसार यदि किसान एनपीके और जिंक का संतुलित इस्तेमाल कर लें तो मिट्टी की सेहत सुधर सकती है।
फसल पर प्रभाव
डॉ. सारंगदेवोत ने बताया यूरिया का ज्यादा उपयोग मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता को कम कर सकता है, जिससे फसल उत्पादन लंबे समय तक प्रभावित हो सकता है। पौधों की पत्तियों को कमजोर कर सकता है। इससे फसल का विकास रुक सकता है। जड़े भी खराब हो सकती हैं। अत्यधिक यूरिया पौधों को अधिक मुलायम और नरम बना देता है। इससे कीट लगने की संभावना बढ़ जाती है।
स्वास्थ्य समस्याएं
कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसएस सारंगदेवोत ने बताया, यूरिया नाईट्स आक्साईड गैस का उत्पादन करता है, जो वायु प्रदूषण का कारण बन सकता है। यह पानी में नाइट्रेट की मात्रा को भी बढ़ाता है और जलीय जीवों को नुकसान पहुंचा सकता है। उच्च बीपी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का संकेत हो सकता है। जैसे किडनी, यकृत या हृदय विफलता। बच्चों में सांस लेने में तकलीफ, त्वचा रोग आदि।
खरपतवार नष्ट करने डाली दवाई से 30 किसानों की फलल बर्बाद
रतलाम. जावरा अंतर्गत ग्राम पंचेवा जेठाना और नोलखा गांव में खेतों में खरपतवार नष्ट करने डाली दवाई से 30 किसानों की करीबन 500 बीघा फसल पूरी तरह नष्ट हो गई। नष्ट फसल का मुआवजा और रासायनिक दवाई बनाने वाली कंपनी के खिलाफ प्रकरण दर्ज करने की मांग को लेकर किसानों ने नायब तहसीलदार वैभव कुमार जैन को ज्ञापन सौंपा। किसानों का कहना है, खेत में जिस जगह दवाई डाली, उसी जगह की फसल खराब नष्ट हो गई। दूसरी दवाई डाली तो वह फसल सुरक्षित है।