किसने किया डिजाइन?
भारत के राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगे’ की डिजाइन का श्रेय स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया को जाता है। आंध्र प्रदेश के रहने वाले पिंगली एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, भूवैज्ञानिक, शिक्षाविद और कृषक थे। 1916 में उन्होंने एक ऐसे ध्वज की कल्पना की, जो पूरे भारत को एक सूत्र में बांधे। उनकी इस पहल को समर्थन मिला और उन्होंने नेशनल फ्लैग मिशन की शुरुआत की।
1921 में महात्मा गांधी को दिखाया डिजाइन
1921 में विजयवाड़ा में हुए अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन में पिंगली ने महात्मा गांधी को अपना डिजाइन दिखाया। इस ध्वज में लाल और हरे रंग की पट्टियां थीं, जो हिंदू और मुस्लिम समुदायों का प्रतिनिधित्व करती थीं। गांधी जी ने सुझाव दिया कि इसमें शांति और अन्य समुदायों के प्रतीक के रूप में सफेद पट्टी और आत्मनिर्भरता के लिए चरखा जोड़ा जाए। इस तरह तिरंगे का प्रारंभिक स्वरूप तैयार हुआ, जिसमें केसरिया, सफेद और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियां थीं, और केंद्र में चरखा था।
1906 से 1947 तक की यात्रा
तिरंगे का वर्तमान स्वरूप एक लंबी यात्रा का परिणाम है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज कई बदलावों से गुजरा, जो स्वतंत्रता संग्राम और राजनैतिक विकास का प्रतीक है। कुछ महत्वपूर्ण पड़ाव इस प्रकार हैं: 1906: पहला गैर-आधिकारिक ध्वज कोलकाता के पारसी बागान चौक में फहराया गया। स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा डिजाइन किए गए इस ध्वज में हरे, पीले और लाल रंग की पट्टियां थीं, जिनमें कमल, सूरज और चांद के प्रतीक थे। यह स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक था।
1907: मैडम भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस में दूसरा ध्वज फहराया। इसमें नारंगी, पीली और हरी पट्टियां थीं, और कमल की जगह सितारे थे। 1917: होम रूल आंदोलन के दौरान एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने नया ध्वज प्रस्तुत किया, जिसमें 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां थीं, साथ ही सप्तऋषि नक्षत्र के सात सितारे और एक अर्धचंद्र था।
1931: पिंगली वेंकैया के डिजाइन को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने औपचारिक रूप से अपनाया। इसमें केसरिया, सफेद और हरे रंग थे, और केंद्र में चरखा था। यह ध्वज स्वराज का प्रतीक बना। 1947: स्वतंत्रता से पहले, डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में गठित समिति ने तिरंगे को अंतिम रूप दिया। चरखे को हटाकर सम्राट अशोक के धर्म चक्र (24 तीलियों वाला नीला चक्र) को शामिल किया गया, जो धर्म, न्याय और प्रगति का प्रतीक है। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया।
तिरंगे के रंगों का महत्व
तिरंगे में तीन रंग है जो कि अलग-अलग सन्देश देते हैं।
- केसरिया: साहस, बलिदान और देश की धार्मिक-आध्यात्मिक संस्कृति का प्रतीक।
- सफेद: शांति, सत्य और एकता का प्रतीक।
- हरा: प्रकृति, उर्वरता और विकास का प्रतीक।
- अशोक चक्र: 24 तीलियों वाला यह चक्र धर्म, सत्य और जीवन की गतिशीलता को दर्शाता है। यह सम्राट अशोक के सारनाथ स्तंभ से प्रेरित है।
कौनसे कपडे का इस्तेमाल
ध्वज की लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 3:2 है, और इसे खादी, सूती या सिल्क से बनाया जाता है, जो महात्मा गांधी द्वारा लोकप्रिय किए गए स्वदेशी कपड़े का प्रतीक है।
राष्ट्रीय ध्वज दिवस का महत्व
22 जुलाई 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में प्रस्तावित किया। उन्होंने कहा, “यह ध्वज हमें गर्व, उत्साह और साहस देता है। यह उन स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों को याद दिलाता है, जिन्होंने इसके लिए अपने प्राण न्योछावर किए।” 2002 में भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन के बाद आम नागरिकों को भी तिरंगा फहराने की अनुमति मिली, बशर्ते वे ध्वज संहिता का पालन करें। उदाहरण के लिए, तिरंगा कटा-फटा नहीं होना चाहिए, इसे जमीन पर नहीं रखा जाना चाहिए, और रात में फहराने के लिए पर्याप्त रोशनी होनी चाहिए।