1963 में हुआ था भारतीय वायुसेना में शामिल
1960 के दशक में आसमान में अपनी बादशाहत कायम करने वाला सोवियत संघ निर्मित फाइटर जेट साल 1963 में भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल हुआ था। इस फाइटर जेट को भारत ने सोवियत संघ से खरीदा था। इसके बाद हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने कई मिग 21 बनाए। 1960 और 1970 के दशक में मिग 21 की मौजूदगी ने भारतीय सेना को भारतीय उपमहाद्वीप में रणनीतिक बढ़त दिलाई। 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध, 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति संग्राम, 1999 में कारगिल युद्ध और 2019 में बालाकोट स्ट्राइक में मिग-21 ने अहम योगदान दिया।
वक्त के साथ कमजोर पड़ने लगा मिग 21
एक तरफ जहां 1960-70 के दशक में सोवियत निर्मित फाइटर जेट की तूती बोलती थी। धीरे-धीरे वक्त से साथ उसका महत्व घटने लगा। तकनीकी खामी के कारण मिग 21 कई बार हादसों का शिकार हो गया। इसके बाद मिग 21 को उड़ता ताबूत का नाम दे दिया गया। 62 वर्षों बाद 19 सितंबर को रिटायर कर दिया जाएगा। मिग 21 के रिटायर होने के बाद भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों के स्क्वाड्रन की संख्या घटकर 29 हो जाएगी। जो कि 1960 के दशक के बाद सबसे कम है। रक्षा विशेषज्ञों ने कहा कि कोई भी फाइटर जेट भारतीय वायुसेना में इतने लंबे समय तक नहीं जुड़ा रहा। वायुसेना के 93 साल के इतिहास में दो-तिहाई से अधिक समय तक भारतीय वायुसेना के बेडे़ में मिग 21 शामिल रहा। इसने 1965 की लड़ाई से ऑपरेशन सिंदूर तक अपना योगदान दिया है।
विदाई समारोह में पूर्व अधिकारी होंगे शामिल
चंडीगढ़ में मिग-21 के विदाई समारोह में वायुसेना के बडे़ अधिकारी और पुराने सैनिक शामिल होंगे। इस मौके पर फ्लाईपास्ट और विमानों की प्रदर्शनी भी होगी। भारत ने मिग-21 के 850 से अधिक विमान खरीदे थे, जिनमें ट्रेनर विमान भी शामिल थे। लगभग 600 विमान हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने भारत में बनाए थे।