किसानों ने बताई अपनी कहानी
रामचरण के अनुसार शुरुआत में कई दिक्कतें आईं, लेकिन हम पीछे नहीं हटे। इसके बाद सफलता मिली और फायदा होने लगा। 2014 में तत्कालीन कलेक्टर ने खेत का निरीक्षण किया था। इसके बाद 15 अगस्त पर आयोजित कार्यक्रम में उनका सम्मान भी किया गया। किसान पाटीदार के मुताबिक, गीला माल 12 से 15 क्विंटल तक हो जाता है। वहीं, इसे सुखाने छीलने के बाद यह ढाई क्विंटल तक होता है। फसल 4 से 5 माह में तैयार हो जाती है। व्यापारी आकर माल ले जाते हैं। पाटीदार ने बताया, फसल जून में बोई जाती और अक्टूबर-नवंबर में खुदाई की जाती है, लेकिन कंद बीज के लिए 10 माह बाद खुदाई अप्रैल में की जाती है। पाटीदार ने बताया, लगभग डेढ़ से 2 लाख रुपए प्रति बीघा की कमाई हो जाती है।
जमीन के इतने हिस्से पर करते है मूसली की खेती
पाटीदार ने बताया, वह 20 बीघा में खेती करते हैं। एक बीघा में लगभग दो क्विंटल कंद बीज लगता है। गरड़ पद्धति से मजदूरों द्वारा चौपाई की जाती है। जून में मानसूनी बारिश के समय बीज बोया जाता है। कंद बीज का भाव इस बार 30 हजार रुपए प्रति क्विंटल है। पाटीदार ने बताया, हम पूर्णत जैविक फसल उपजाते हैं। भरपूर मात्रा में गोबर का खाद एवं केंचुआ खाद डालते हैं। साथ ही स्प्रिंकलर से सिंचाई करते हैं।
बीज भी सप्लाई करते हैं
पाटीदार बताते हैं, वे पूरे भारत में बीज भेजते हैं। किसान ऑनलाइन बुकिंग कर बीज ले जाते हैं। उन्होंने अपने फार्म पर प्रशिक्षण केंद्र भी खोला है, जहां किसानों को प्रशिक्षण भी देते हैं। पाटीदार ने बताया, उन्हें बागली विकासखंड उद्यानिकी अधिकारी राकेश सोलंकी एवं टीम का मार्गदर्शन मिलता रहता है।