scriptअरावली की वादियों के बीच विराजे बालेश्वर महादेव… | Neemkathana. The ancient Baleshwar Mahadev temple situated in the valleys of Aravali is a center of faith and devotion. As soon as the month of Saavan begins, a crowd of devotees starts gathering here. Every Monday, a large number of devotees reach this Shivdham for Jalabhishek. According to Pandit Kaushal Dutt Sharma, Baleshwar Mahadev is considered to be the child form of Shiva. | Patrika News
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अरावली की वादियों के बीच विराजे बालेश्वर महादेव…

नीमकाथाना. अरावली की वादियों में स्थित प्राचीन बालेश्वर महादेव मंदिर श्रद्धा और भक्ति का केंद्र है।

सीकरJul 17, 2025 / 11:00 am

Mukesh Kumawat

नीमकाथाना. अरावली की वादियों में स्थित प्राचीन बालेश्वर महादेव मंदिर श्रद्धा और भक्ति का केंद्र है। सावन शुरू होते ही यहां भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। इस शिवधाम में हर सोमवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। पंडित कौशलदत्त शर्मा के अनुसार बालेश्वर महादेव को शिव का बालस्वरूप में माना जाता है।

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मंदिर परिसर की उत्तरी दीवार पर गणेश प्रतिमा के नीचे प्राकृत भाषा में अंकित एक शिलालेख भी मिला है, जो मंदिर की प्राचीनता का प्रमाण है। मान्यता है कि सूर्यवंशी राजाओं ने इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था।

प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर: 

बालेश्वर धाम पहाड़ियों के बीच हरियाली से आच्छादित क्षेत्र में स्थित है। यहां तक पहुंचने वाले रास्ते सुंदर प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर हैं। मंदिर परिसर में शांति, आध्यात्मिक ऊर्जा और प्रकृति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

शिवलिंग की गहराई आज तक नहीं मापी गई

मंदिर में स्थापित शिवलिंग को लेकर मान्यता है कि यह प्राकृतिक रूप से निर्मित है। मंदिर के पुजारी लीलाराम योगी बताते हैं कि उनके पूर्वजों ने लगभग 400 साल पहले इस शिवलिंग की गहराई जानने के लिए खुदाई की थी, लेकिन 12.5 फीट नीचे जाने के बाद भी शिवलिंग का अंतिम छोर नहीं मिला। खुदाई के दौरान मधुमक्खियों के हमले के कारण कार्य रोकना पड़ा।

ऐसे पहुंचें बालेश्वर धाम:

नीमकाथाना से बालेश्वर महादेव मंदिर तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। नजदीकी रेलवे स्टेशन नीमकाथाना है, जो दिल्ली, जयपुर और सीकर से जुड़ा हुआ है। स्टेशन से मंदिर 10 किमी की दूरी पर स्थित है।

अमृत कुंड भी रहस्य

मंदिर के पीछे गुलर के पेड़ की जड़ में स्थित एक कुंड रहस्य बना हुआ है। यहां से निरंतर जल प्रवाहित होता है। यह जल कहां से आता है, इसका अब तक कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला है।

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