सिर्फ वाहन नहीं, सोच भी बदलनी होगी
ऋतुपर्ण दवे, स्वतंत्र लेखक एवं स्तंभकार


दुनियाभर में जीवाश्म ईंधन के विकल्प पर तरह-तरह के शोध और खोज जारी हैं। पेट्रोलियम उत्पाद विशुद्ध जीवाश्म ईंधन हैं जो उन प्राचीन जीवों के अवशेषों से बनते हैं, जो लाखों वर्षों से धरती के नीचे दबे हुए हैं। कच्चा तेल कहलाने वाला यह पदार्थ वास्तव में धरती में दफन जीवों के अवशेषों के अत्यधिक तापमान और दबाव में रहने से हाइड्रोकार्बन में बदल जाता है। एक तो ये पर्यावरण के लिए घातक हैं दूसरा आखिर कब तक इन पर निर्भर रहेंगे। जिस तरह से दुनिया इसका अंधाधुंध दोहन कर रही है। एक दिन इनकी उपलब्धता को लेकर एक नए और भयावह युद्ध की आशंका से कतई इनकार नहीं किया जा सकता।
जीवाश्म ईंधन के विकल्प के तौर पर फिलहाल इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रति झुकाव व आकर्षण ने ऐसे वाहनों से बिगड़े पर्यावरण को सुधारने के लिए नया रास्ता जरूर खोज लिया है। लेकिन जिस तरह से दुनिया में ईवी वाहनों की मांग बढ़ रही है, उससे लगता है कि यह अभी बेहतर विकल्प बनेगा, जो प्रकृति-पर्यावरण के अनुकूल और उपलब्धता की दृष्टि से ज्यादा प्राकृतिक है। लेकिन मानव की प्रकृति ऐसे खोज व शोध में लगे रहने की है, जो कि नई-नई और ज्यादा लाभकारी हों। काफी सारे शोध और निष्कर्षों के बाद अब वैज्ञानिक और ऑटोमोबाइल सेक्टर यह मानने को राजी हुआ कि हाइड्रोजन वाहन ही पेट्रोल और डीजल से चलने वाली गाडिय़ों का विकल्प बनेंगे।
बड़ी-बड़ी निर्माता कंपनी इस बात को लेकर उत्साहित हैं कि हाइड्रोजन, ग्रीन मोटरिंग की दिशा में परिवर्तनकारी होगी। इसके लिए सुपरमॉलिक्यूलर क्रिस्टल हाइड्रोजन भंडारण जरूरी होगा, जिसके सुखद परिणामों ने पहले ही हरी झंडी दे दी है। हाइड्रोजन ब्रह्मांड में सबसे प्रचुर तत्त्व जरूर हो सकता है, लेकिन पर्यावरण के लिहाज से पृथ्वी पर इसका उत्पादन अब भी मुश्किल है। फिलहाल अधिकांश हाइड्रोजन जीवाश्म ईंधन से बनता है मुख्य रूप से मीथेन या कोयला गैसीकरण के भाप सुधार से। लेकिन विडंबना यह कि दोनों ही कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। यदि कार्बन कैप्चर उपयोग और भंडारण को मिलाया जाए तो इससे बने हाइड्रोजन को ब्लू हाइड्रोजन कहते हैं। जबकि इसके विपरीत ग्रीन हाइड्रोजन जलवायु द्वारा उत्पादित होता है। यह पानी के विभाजन से बनता है। इसके लिए सौर या पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग होता है। लेकिन यह भी सच है कि जीवाश्म ईंधन की तुलना में हाइड्रोजन ईंधन की लागत को प्रतिस्पर्धी बनने में जरूर कुछ वक्त लगेगा।
वर्तमान में ईंधन टैंक में हाइड्रोजन की ताकत से पहियों को दौड़ाने के उपयोग के लिए बिजली उत्पादन में महज 60 प्रतिशत कुशलता ही प्राप्त है, जबकि सैद्धान्तिक रूप से यह क्षमता 83 प्रतिशत है। ऑटोमोबाइल सेक्टर के दिग्गजों की यह धारणा भी हाइड्रोजन के उपयोग में बाधा बन रही है कि कोई भी इंजीनियरिंग इसे और बेहतर नहीं बना सकती। थर्मोडॉयनामिक्स के नियमों से भी यह हमेशा एक अपेक्षाकृत अक्षम पावरट्रेन यानी कम शक्ति प्रदान करने वाली प्रणाली बनेगी। लेकिन हर चिंता का निदान है।
किसी भी नए आविष्कार को दुनिया में सहज, सरल और जनोपयोगी बनाने में वक्त लगता है। लोगों की धारणाओं और वैज्ञानिक चुनौतियों से निपटना पड़ता है। भले ही अभी हम सस्ते, कम कार्बन, हरा या नीला हाइड्रोजन से बहुत दूर हों, लेकिन भविष्य में हमारे पास बहुत कम लागत वाला हाइड्रोजन होगा, जिसका आम और खास सभी उपयोग कर सकेंगे। विज्ञान ने बड़ी से बड़ी चुनौती स्वीकारी है। सफल हाइड्रोजन वाहन को मूर्त रूप देना भी इसी में एक है। अभी हाइड्रोजन कारों की मांग में कमी केवल इसमें दक्षता या पारंगत नहीं होने के चलते है। ईंधन भरने के बुनियादी ढांचे बहुत सीमित हैं। यह तकनीक उस दौर में है, जैसे नया-नया कीपैड मोबाइल हमारे लिए अजूबा और सीखने जैसा था। आज हर रोज मोबाइल फोन का विस्तार और इसकी नित नई उन्नत तकनीक बदलते देखना एकदम आम हो गया है। ठीक वही भविष्य हाइड्रोजन वाहनों का है।
विश्व में कई देशों ने नए शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य तय कर लिया है। अभी भले ही विकल्प इलेक्ट्रिक वाहन लगें, लेकिन भविष्य में यह भी प्रदूषण के मानकों के विरुद्ध दिखेंगे। ऐसे में अंतत: आने वाला दौर सिवाय हाइड्रोजन वाहन के कोई दिखता नहीं। भविष्य ‘फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक वाहन’ यानी एफसीईवी का होगा। यह एक प्रकार का ऐसा वाहन है, जो ईंधन सेल तकनीक का उपयोग करके बिजली पैदा करता है। इसमें ईंधन सेल में हाइड्रोजन को ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया कराकर बिजली उत्पन्न की जाती है। अभी इसमें जोखिम है लेकिन जल्द ही उन्नत तकनीकें होंगी जो जोखिम को न्यूनतम करेंगी। हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं कि हाइड्रोजन ऑक्सीजन की प्रतिक्रिया से एकमात्र पानी बनता है।
हमारे देश में हाइड्रोजन वाहन लेकर तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। सरकार ने 2030 तक 1,000 हाइड्रोजन वाहन लाने का लक्ष्य भी तय कर लिया है। इससे पेट्रोल-डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता घटेगी जो पर्यावरण के हित में बड़ा कदम होगा। भविष्य में रिफाइनरियों में ग्रीन हाइड्रोजन बनेगी। इसके लिए भारी मात्रा में अक्षय ऊर्जा, बड़े संयंत्र, ढेर सारा पानी और जमीन की जरूरत होगी। हाइड्रोजन ईंधन उत्पादन के साधन रोजगार के पर्याप्त अवसर भी बनेंगे। सरकार की भी मंशा है कि हर 200 किलोमीटर पर ईंधन के पंप लगें, जिनसे बायोगैस से बनी हाइड्रोजन या विकेंद्रीकृत हाइड्रोजन किफायती दामों में बिके। वह दिन भी दूर नहीं, जब हमारे घरों की छतों पर सोलर रूफ टॉप जैसे हाइड्रोजन प्लांट भी लगने लगें। निश्चित रूप से जहां चाह, वहां राह सच ही है। कितना अच्छा लगेगा जब सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश न केवल दुनिया को प्रदूषण मुक्त करने में सबसे आगे होगा, बल्कि सस्ती, सुलभ और हर घर हरित ऊर्जा बनाने वाला देश बन दुनिया के बढ़ते तापमान को घटाने में भी सबसे अहम होगा।
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