scriptसंपादकीय : युवाओं का साइबर अपराध में फंसना चिंताजनक | Editorial: Youth getting caught in cyber crime is worrying | Patrika News
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संपादकीय : युवाओं का साइबर अपराध में फंसना चिंताजनक

यह जानकारी सचमुच चिंता पैदा करने वाली है कि विदेशों में हाई-प्रोफाइल नौकरियों का झांसा देकर देश के शिक्षित बेरोजगार युवकों को साइबर अपराध में धकेलने का काम हो रहा है। हाल के महीनों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें खुलासा हुआ है कि भारत से भेजे गए युवकों से फर्जी वेबसाइट और […]

जयपुरJul 22, 2025 / 10:23 pm

pankaj shrivastava

यह जानकारी सचमुच चिंता पैदा करने वाली है कि विदेशों में हाई-प्रोफाइल नौकरियों का झांसा देकर देश के शिक्षित बेरोजगार युवकों को साइबर अपराध में धकेलने का काम हो रहा है। हाल के महीनों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें खुलासा हुआ है कि भारत से भेजे गए युवकों से फर्जी वेबसाइट और कॉल सेंटर्स के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साइबर ठगी कराई जा रही है। इन युवकों की मजबूरी का फायदा उठाकर साइबर ठगी के अड्डों में रखा जाता है। उनके पासपोर्ट तक छीन लिए जाते हैं और उन्हें शारीरिक व मानसिक प्रताडऩा दी जाती है। युवाओं को जाल में फंसाने वाले साइबर सिंडिकेट सोशल मीडिया या संदिग्ध एजेंटों के जरिए नौकरियों का लालच देकर थाईलैंड, लाओस, म्यांमार, कंबोडिया और वियतनाम जैसे देशों में ले जाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक अकेले थाईलैंड में ही 15 हजार से ज्यादा युवा फंसे हुए हैं। इसी तरह लाओस, कंबोडिया, वियतनाम और म्यांमार के आंकड़े भी सामने आ चुके हैं जो 7 हजार से भी अधिक हैं। इन युवाओं में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश, केरल और जम्मू कश्मीर के युवाओं की संख्या अधिक है। हैरत की बात यह है कि पढ़े-लिखे युवा इन साइबर ठगों के जाल में न केवल खुद फंस रहे हैं बल्कि बाद में खुद उसी आपराधिक नेटवर्क का हिस्सा बन जाते हैं। पढ़े-लिखे युवाओं को इस जालसाजी से बचाना जरूरी है। विदेश मंत्रालय को ऐसे मामलों की निगरानी के लिए विशेष प्रकोष्ठ बनाना चाहिए, जो विदेशों में फंसे युवाओं की पहचान कर मदद कर सकें। साथ ही स्कूल, कॉलेज और आईटीआई स्तर पर फर्जी जॉब ऑफर्स और ट्रैफिकिंग के खतरे को लेकर नियमित जागरूकता अभियान चलाने चाहिए।
केंद्र व राज्य सरकारों को चाहिए कि युवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर कुशलता-आधारित रोजगार कार्यक्रमों को प्राथमिकता दें। इन सबसे अहम है सामाजिक सोच में बदलाव की। भारत में समाज का ताना-बाना कहीं न कहीं वैभव और अमीरी के इर्द-गिर्द व्यवहार करता है। इसे ऐसे समझें कि आज के युवा पर सिर्फ उसके परिजनों की उम्मीदों का बोझ नहीं है बल्कि समाज क्या कहेगा, उसका भी डर है। पढ़ाई और नौकरी की प्रतिस्पर्धा के अलावा एक और प्रतिस्पर्धा है जो युवा को परेशान कर रही है वह है- दूसरों से तुलना। ये कड़वा सच है कि आज विवाह समारोहों में युगल के व्यवहार और गुणों से ज्यादा यह चर्चा होती है कि उनकी नौकरी कैसी है। नौकरी के लालच में फंस रहे युवा को यह सोचने-समझने की भी परवाह नहीं होती कि आखिर कोई अचानक बड़ी कमाई वाली नौकरी का ऑफर दुनिया के दूसरे देश से आखिर क्यों दे रहा है? इसके पीछे छिपी माफिया की मंशा को भी वह समझ नहीं पाता। सरकार तो ऐसे प्रकरणों में संज्ञान ले ही, युवाओं को सुरक्षित माहौल देना समाज का भी दायित्व है।

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