सम्पादकीय : नस्लभेद को रोकें मानवीय मूल्यों के पोषण से
ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड शहर में जिस भारतीय छात्र पर बेरहमी से हमला हुआ उसकी स्थानीय लोगों से पार्किंग को लेकर बहस हुई थी। वहीं डबलिन में भारतीय पर मिथ्या आरोप लगाते हुए उसके साथ बर्बरता की गई।


रंगभेद और नस्लभेद को लेकर दुनिया भर के देशों में कानून बने हुए हैं। इन कानूनों के मुताबिक ऐसे मामलों में सख्ती बरतने के दावे भी किए जाते हैं। इनके बावजूद नस्लभेद आधारित प्रताडऩा व हिंसा की घटनाएं हो रहीं हो तो यही कहा जाएगा कि नस्लभेद करने वाले लोग सभ्य समाज में रहने के कतई हकदार नहीं हो सकते। ताजा मामलों में ऑस्ट्रेलिया में एक भारतीय छात्र पर जानलेवा हमला हो या फिर आयरलैंड की राजधानी डबलिन में काम की तलाश में पहुंचे भारतीय पर हमले की घटना, समाज में कम होने का नाम नहीं ले रहे ऐसे ही नासूर की तरफ संकेत करती हैं। ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड शहर में जिस भारतीय छात्र पर बेरहमी से हमला हुआ उसकी स्थानीय लोगों से पार्किंग को लेकर बहस हुई थी। वहीं डबलिन में भारतीय पर मिथ्या आरोप लगाते हुए उसके साथ बर्बरता की गई।
ऑस्ट्रेलिया में नस्लभेदी हिंसा का शिकार हुए भारतीय के बयान से उसके दर्द को समझा जा सकता है जिसमें उसने कहा कि जब इस तरह की घटनाएं होती है तो ऐसा लगता है कि आपको वापस चले जाना चाहिए। वह इसलिए कि आप अपने शरीर में कुछ भी बदल सकते हैं लेकिन रंग नहीं। ऑस्ट्रेलिया व आयरलैंड दोनों ही देशों रहने वाले भारतीयों में बड़ी संख्या में छात्र भी हैं। दोनों ही प्रकरणों में पुलिस ने अपराधियों की पहचान कर ली है। आयरलैंड में भारतीय राजदूत ने घटना पर विरोध जताते हुए दोषियों को सख्त सजा देने की मांग भी की है। नस्लभेद की इस वैश्विक समस्या का समाधान तब ही संभव है जब प्रत्येक देश इसके खिलाफ सख्त रवैया अपनाए। नस्ल और रंग आधारित घृणा का भाव तब जाकर ही खत्म हो सकेगा जब इनके प्रति पूर्वाग्रह को खत्म करने की व्यापक मुहिम शुरू की जाए। चिंता इस बात की ही है कि विभिन्न मानवाधिकार संगठनों की ओर से चलाए जाने वाले आंदोलनों व वैश्विक संधियों के बावजूद दुनिया के शिक्षित व विकसित कहे जाने वाले देशों में भी रंगभेद व नस्लभेद के उदाहरण सामने आते रहते हैं। बड़ी चिंता इस बात की है कि इनमें अधिकांश वे देश हैं जो अपने यहां मानवाधिकारों के संरक्षण व समानता के दावे करते नहीं थकते। नस्लभेद से उपजी हिंसा ज्यादा खतरनाक इसलिए भी है क्योंकि इसमें सदैव जान-माल के नुकसान की आशंका रहती है। आस्ट्रेलिया हो या फिर अमरीका और या फिर कोई अन्य देश, सबको यह समझना होगा कि समाज में सबको गरिमा से जीने का अधिकार है।
नस्ल व रंग के आधार पर भेदभाव करते हुए होने वाली किसी भी हिंसा का असर उस देश में कानून-व्यवस्था के माहौल पर भी पड़ता है। नस्ल, जाति, समुदाय या लिंग आधारित भेदभाव की घटनाएं ऐसी सामाजिक विकृति की ओर संकेत करती है जिसकी आज के सभ्य समाज में कतई जगह नहीं है। सही मायने में इस तरह की घटनाएं मानवीय मूल्यों के पोषण से ही थमेंगी।
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