जानें कहां है एशिया की सबसे बड़ी इमली मंडी? जो अपने अनोखे स्वाद से बनी है ग्लोबल ब्रांड
Asia’s largest tamarind market: एशिया की सबसे बड़ी इमली मंडी छत्तीसगढ़ के बस्तर में स्थित है। यहां की इमली अपने अनोखे स्वाद, गुणवत्ता और आदिवासी आजीविका से जुड़ी खास पहचान रखती है।
एशिया की सबसे बड़ी इमली मंडी (Photo source- Patrika)
Asia’s largest tamarind market: बस्तर की घनी हरियाली, आदिवासी संस्कृति और अनोखे स्वाद का प्रतिनिधित्व करने वाली इमली, अब केवल घरेलू रसोई तक सीमित नहीं है। यह क्षेत्र आज एशिया की सबसे बड़ी इमली मंडी का गौरव हासिल कर चुका है। बस्तर का यह मंडी न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अपनी अलग पहचान बना चुका है। यहां सालाना हजारों टन इमली की खरीदी-बिक्री होती है, जिससे हजारों आदिवासी परिवारों की आजीविका जुड़ी हुई है।
छत्तीसगढ़ के बस्तर की इमली अपनी अनोखी खट्टास, गाढ़े पल्प और प्राकृतिक गुणवत्ता के कारण अब एक ब्रांड के रूप में पहचान बना चुकी है। एशिया की सबसे बड़ी इमली मंडी बस्तर में स्थित है, जहां सालाना हजारों टन इमली की खरीद-बिक्री होती है। यहां की इमली बिना रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उगाई जाती है, जिससे यह जैविक और स्वास्थ्यवर्धक मानी जाती है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में बस्तर की इमली की मांग तेजी से बढ़ी है। इसकी आपूर्ति यूरोप, अमेरिका, खाड़ी देशों और दक्षिण-पूर्व एशिया तक की जा रही है। इसका गाढ़ा स्वाद और उच्च गुणवत्ता इसे विदेशी उपभोक्ताओं के बीच भी लोकप्रिय बना रहा है।
राज्य सरकार और वन विभाग ने बस्तर की इमली को ‘ब्रांडेड प्रोडक्ट’ के रूप में प्रमोट करने के लिए विशेष पहल की है। प्रसंस्करण, पैकेजिंग और मार्केटिंग में आधुनिक तकनीक अपनाई जा रही है, जिससे इसका मूल्य और बढ़ गया है। यह न केवल बस्तर के स्वाद की पहचान बन रही है, बल्कि हजारों आदिवासी परिवारों की आजीविका का मजबूत साधन भी है।
बस्तर की इमली क्यों प्रसिद्ध है?
छत्तीसगढ़ के बस्तर की इमली अपनी अनोखी खट्टास, प्राकृतिक स्वाद और उच्च गुणवत्ता के कारण देश-विदेश में बेहद लोकप्रिय है। यहां की इमली पारंपरिक और जैविक तरीकों से तैयार की जाती है, जो इसे अन्य क्षेत्रों की इमली से अलग बनाती है।
प्राकृतिक स्वाद और गुणवत्ता– बिना किसी रासायनिक प्रक्रिया के तैयार होने वाली बस्तर की इमली अपनी खट्टास और गहरे रंग के कारण खास पहचान रखती है। वनोपज मंडी और निर्यात– बस्तर की इमली मंडी में बड़ी मात्रा में खरीद-बिक्री होती है, जिसके बाद प्रसंस्करण कर इसे निर्यात किया जाता है।
प्रसंस्कृत उत्पादों की मांग– बस्तर की इमली से इमली पल्प, चटनी, सॉस और कैंडी जैसे उत्पाद तैयार कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचे जाते हैं। सरकारी पहल– राज्य सरकार और वन विभाग इमली को ग्लोबल मार्केट तक पहुंचाने के लिए विशेष योजनाएं और ट्रेड फेयर आयोजित करते हैं।
आदिवासी आजीविका में योगदान– इमली का निर्यात बस्तर के हजारों आदिवासी परिवारों के लिए आय का मुख्य स्रोत बन रहा है।
बस्तर की इमली का स्वाद और गुणवत्ता
बस्तर की मिट्टी और मौसम इमली की खेती के लिए आदर्श माने जाते हैं। यहां पैदा होने वाली इमली अपने गहरे रंग, खट्टेपन और प्राकृतिक स्वाद के लिए जानी जाती है। यह प्राकृतिक और जैविक पद्धतियों से तैयार होती है, जो इसे बाजार में खास पहचान दिलाती है।
एशिया की सबसे बड़ी मंडी का गौरव छत्तीसगढ़ का बस्तर जिला इमली व्यापार का बड़ा केंद्र बन चुका है। यहां की इमली मंडी एशिया की सबसे बड़ी मानी जाती है, जहां हर साल हजारों टन इमली खरीदी-बिक्री के लिए आती है। यह मंडी देश के अन्य राज्यों जैसे महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और अंतरराष्ट्रीय बाजार तक सप्लाई करती है।
आदिवासियों की आजीविका का आधार बस्तर की अधिकांश आदिवासी जनसंख्या वनों में मिलने वाली उपज, खासकर इमली पर निर्भर है। मंडी में इमली की उचित कीमत मिलने से हजारों परिवारों की आमदनी सुनिश्चित होती है। राज्य सरकार और वन विभाग मिलकर तेंदूपत्ता, साल बीज, चिरौंजी, और इमली जैसे वनोपजों की खरीदी की व्यवस्था करते हैं।
आधुनिक सुविधाएं और व्यापार का विस्तार बस्तर की इमली मंडी में अब आधुनिक प्रसंस्करण और पैकेजिंग यूनिटें लगाई जा रही हैं। यहां इमली को पल्प और अन्य उत्पादों में बदलकर निर्यात किया जाता है। इससे स्थानीय व्यापारियों को बेहतर कीमत मिलती है और बस्तर की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और मजबूत होती है।
भविष्य की संभावनाएं बस्तर की इमली मंडी में हर साल कारोबार का आकार बढ़ रहा है। सरकार की योजनाएं, आदिवासी संगठनों की सक्रियता और व्यापारियों की बढ़ती मांग इस मंडी को और अधिक ऊंचाई देने की क्षमता रखती हैं। बस्तर की इमली अब केवल स्थानीय स्वाद ही नहीं, बल्कि आर्थिक प्रगति का प्रतीक भी बन चुकी है।
बस्तर में इमली की खेती
Asia’s largest tamarind market: प्राकृतिक रूप से उगने वाले इमली के पेड़
बस्तर के वनों और ग्रामीण क्षेत्रों में इमली के पेड़ दशकों से प्राकृतिक रूप से उगते आ रहे हैं। आदिवासी परिवार इन्हें ‘वन उपज’ के रूप में संरक्षित और संजोते हैं।
मिट्टी और जलवायु बस्तर की लाल बलुई और दोमट मिट्टी इमली के लिए उपयुक्त मानी जाती है। यह पेड़ कम पानी में भी पनप जाता है और लंबे समय तक सूखे मौसम को सहन कर सकता है। यहां का उप-उष्णकटिबंधीय जलवायु (गर्म और आर्द्र मौसम) इसके लिए आदर्श है।
पौधारोपण की विधि स्थानीय लोग बीज से इमली के पौधे तैयार करते हैं या कलम (ग्राफ्टिंग) का उपयोग करते हैं। बरसात के मौसम (जुलाई-अगस्त) में पौधारोपण किया जाता है। पौधों को लगभग 8 से 10 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है।
देखभाल और खाद बस्तर में इमली की खेती ज्यादातर प्राकृतिक होती है, इसमें गोबर खाद और जैविक खाद का प्रयोग होता है। पेड़ों को बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती, साल में केवल कुछ सिंचाई (सूखे मौसम में) पर्याप्त होती है।
फल तोड़ाई और संग्रहण इमली के फल फरवरी से अप्रैल के बीच पकते हैं। आदिवासी परिवार पेड़ों से फली तोड़कर धूप में सुखाते हैं और फिर मंडियों में बेचते हैं।
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