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सैन रेचल खुदकुशी और दुनिया में रंगभेद की बहस: क्या सच में ग्लैमर की दुनिया इतनी क्रूर है ?

Colorism in Entertainment Industry:मनोरंजन उद्योग में रंगभेद बहुत होने लगा है,जानिए फिल्मों से फैशन तक रंग के आधार पर भेदभाव की सच्चाई।

भारत

MI Zahir

Jul 15, 2025

Colorism in Entertainment Industry
मनोरंजन की दुनिया में रंगभेद। ( फोटो: X Handle Vayam Bharat/ Fashion by iaam.)

Colorism in Entertainment Industry: भारत की मशहूर मॉडल और सोशल मीडिया पर्सनैलिटी सैन रेचल रंगभेद (Colorism in Bollywood) के खिलाफ अपनी आवाज़ के लिए जानी जाती थीं, उन्होंने हाल ही में पांडीचेरी में आत्महत्या कर ली। यह दुखद घटना मनोरंजन उद्योग में व्याप्त रंगभेद (Dark Skin Discrimination) की गहरी समस्या उजागर करती है। भारतीय फिल्म और फैशन उद्योग में अक्सर गहरे रंग के कलाकारों और मॉडल्स को कम मौके मिलते हैं। सफेद या गोरे रंग (Fair Skin Bias in Fashion) के कलाकारों को ज्यादा महत्व दिया जाता है, जो कई बार करियर को प्रभावित करता है। फैशन इंडस्ट्री जितनी ग्लैमरस दिखती है, उतनी ही भीतर से जटिल और पक्षपाती भी है। एक बड़ा पक्षपात है -रंगभेद (Colorism)। ये सिर्फ नस्लभेद (Entertainment Industry Racism) नहीं, बल्कि एक ही नस्ल में भी गहरे और हल्के रंग वालों के बीच भेदभाव है।

भारत में मनोरंजन उद्योग में रंगभेद के प्रमुख उदाहरण

कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में गोरेपन का प्रचलन।

फिल्मों में रंग के आधार पर भूमिकाओं का भेदभाव।

कई विज्ञापनों में गोरे रंग को ही खूबसूरती का मानक बताया जाता है।

कई बार गहरे रंग वाले कलाकारों को नकारात्मक या मामूली किरदार दिए जाते हैं।

मॉडलिंग में रंग के कारण अवसरों की कमी

रंगभेद की वजह से कई प्रतिभाशाली मॉडल्स को प्रमुख ब्रांड प्रमोशन नहीं मिलता।

दुनिया भर में मनोरंजन उद्योग में रंगभेद के उदाहरण।

विश्व स्तर पर भी मनोरंजन उद्योग रंगभेद की समस्याओं से मुक्त नहीं है।

हॉलीवुड में ‘Colorism’ की समस्या

हल्के रंग के कलाकारों को अधिक स्क्रीन टाइम और बड़ी भूमिकाएं मिलती हैं।

फिल्म इंडस्ट्री में नस्लीय टाइपकास्टिंग।

रंग के आधार पर भूमिकाओं का चयन करना आम बात है।

फैशन उद्योग में गहरे रंग वाले मॉडल्स का कम प्रतिनिधित्व

फैशन शो और विज्ञापनों में रंगभेद का असर साफ दिखाई देता है।

बॉलीवुड में रंगभेद की समस्या

बॉलीवुड में रंगभेद पर खुलकर बात करना अभी भी चुनौतीपूर्ण है। गोरे रंग को अक्सर सफलता और खूबसूरती का पैमाना माना जाता है। गहरे रंग के कलाकारों को साइड रोल या विलेन की भूमिकाएं मिलना आम है। कुछ कलाकार और निर्देशक इस रवैये को बदलने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन समाज में फैले रंगभेद की जड़ें गहरी हैं।

बड़े फैशन ब्रांड्स और डिज़ाइनर्स को गोरा रंग पसंद

बड़े फैशन ब्रांड्स और डिज़ाइनर अक्सर गोरे या हल्के रंग के मॉडल्स को अपने शोज़ और अभियानों में प्राथमिकता देते हैं। गहरे रंग की त्वचा वाले मॉडल्स को कम मौके, साइड रोल या “एथनिक” थीम तक सीमित रखा जाता है।

फैशन व पब्लिक रिलेशन इंडस्ट्री में अब भी गोरेपन को प्राथमिकता

ब्यूटी स्टैंडर्ड्स अभी भी गोरेपन से जुड़े हैं, जिससे असुरक्षा की भावना पैदा होती है। भारत में मॉडलिंग और कॉस्मेटिक विज्ञापन लंबे समय तक “फेयरनेस” को सुंदरता का मानक बताते रहे हैं। हाल के वर्षों में कुछ बदलाव हुए हैं, लेकिन फैशन व पब्लिक रिलेशन इंडस्ट्री में अब भी गोरेपन को प्राथमिकता मिलती है।

फेयर एंड लवली क्रीम का नाम बदला गया

कुछ कंपनियों ने इस दर्द को समझा भी है, मसलन कुछ अरसा पहले फेयर एंड लवली क्रीम का नाम बदल कर लेडीज के लिए ग्लो एंड लवली और जेंट्स के लिए ग्लो एंड हैंडसम रखा गया है। इस ब्रांड ने सन 2019 में अपने विज्ञापनों और पैकेजिंग से फेयर, व्हाइटनिंग और लाइटनिंग जैसे शब्द हटा दिए थे, ताकि यह संदेश दिया जा सके कि सुंदरता केवल गोरेपन में नहीं, बल्कि स्वस्थ और चमकदार त्वचा में है।

दुनिया में स्थिति कैसी है ?

वेस्टर्न फैशन वीक में ब्लैक, ब्राउन और एशियाई मॉडल्स का प्रतिनिधित्व धीरे-धीरे बढ़ा है, लेकिन टॉप ब्रांड्स में गोरों का वर्चस्व अब भी कायम है। कई अंतरराष्ट्रीय मॉडल्स जैसे डकी थोठ या अजयला फ्रेयर ने रंगभेद के खिलाफ आवाज़ उठाई है।

हॉलीवुड में रंगभेद और उसकी चुनौतियां

हॉलीवुड ने रंगभेद के खिलाफ कई आंदोलन देखे हैं, जैसे ब्लैक लाइव्स मैटर। फिर भी, हल्के रंग के कलाकारों को प्राथमिकता मिलती है। कास्टिंग और विज्ञापन उद्योग में रंग के आधार पर भेदभाव आज भी मौजूद है। हाल के वर्षों में विविधता बढ़ाने के लिए कई पहल हुई हैं, लेकिन सुधार धीमी गति से हो रहा है।

क्या रंगभेद के खिलाफ हो रहा कुछ ?

कुछ फिल्म निर्माता, फैशन डिजाइनर और सामाजिक संगठन रंगभेद के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं। वे विविधता और समावेशन (Diversity & Inclusion) को बढ़ावा दे रहे हैं। धीरे-धीरे कुछ बदलाव भी नजर आ रहे हैं, लेकिन यह अभी बहुत कम है।

रंगभेद खत्म करने के लिए क्या जरूरी है ?

फिल्मों और फैशन में समान अवसर देने होंगे।

विज्ञापन और मीडिया में सभी रंगों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए।

समाज में रंगभेद के खिलाफ जागरूकता बढ़ानी होगी।

मनोरंजन उद्योग में रंगभेद एक गंभीर समस्या

मनोरंजन उद्योग में रंगभेद एक गंभीर समस्या है, जो कलाकारों के करियर और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती है। बदलाव के लिए कलाकारों, निर्माताओं, फैशन इंडस्ट्री और समाज को सभी को मिल कर कोशिश करनी होगी।

फिल्मों व फैशन में रंगभेद पर एक्सपर्ट कमेंट

मॉडल व सोशल मीडिया पर्सनैलिटी सैन रेचल के शब्दों में, रंगभेद ने मेरे करियर और आत्मसम्मान को गहरा प्रभावित किया। इस उद्योग में बदलाव बेहद जरूरी है। फैशन डिजाइनर रिया शर्मा का कहना है,हमारे शो में विविध रंगों के मॉडल्स को जगह दे रहे हैं, पर अभी भी ग्राहक और मीडिया का दबाव गोरेपन पर ज्यादा है। फिल्म निर्देशक राजीव मेहरा कहते हैं, कहानी और किरदार के लिहाज से कलाकार का रंग नहीं देखना चाहिए। रंगभेद से बाहर आकर हम बेहतर आर्ट क्रिएट कर सकते हैं।

सामाजिक अभियान और आंदोलन

रंगभेद के खिलाफ नए अभियान सोशल मीडिया पर तेज़ी से फैल रहे हैं, जिससे फिल्म और फैशन उद्योग पर दबाव बढ़ रहा है। कुछ ब्रांड्स ने विविधता को अपना मूल्य बताया है और वे कलाकारों और मॉडल्स के चयन में समानता बढ़ा रहे हैं।

सरकारी और इंडस्ट्री स्तर पर नीति निर्माण

रंगभेद के मुद्दे पर कानूनी और नीति सुधार की मांग जोर पकड़ रही है, जिससे नियम और निर्देश बन सकते हैं।

डिजिटल प्लेटफॉर्म का रोल

OTT और सोशल मीडिया ने विविध कलाकारों को पहचान दिलाई है, जो पारंपरिक उद्योग के रंगभेद को चुनौती दे रहे हैं।