भौतिकवाद में मनुष्य का संयमित रहना आवश्यक
णमोकार मंत्र के विधान के पांचवें दिन शांति वीर धर्म स्थल पर जैन मुनि प्रज्ञान सागर ने धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि मनुष्य जीवन बहुत ही मुश्किल से मिला है। इसलिए बुरे कामों को छोडकऱ अपनी आत्मा के लिए अच्छे कार्य करें, ताकि आत्मा से मलिनता दूर हो।


नैनवां. शान्तिवीर धर्मस्थल पर धर्मसभा में प्रवचन सुनते श्रद्धालु।
नैनवां. णमोकार मंत्र के विधान के पांचवें दिन शांति वीर धर्म स्थल पर जैन मुनि प्रज्ञान सागर ने धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि मनुष्य जीवन बहुत ही मुश्किल से मिला है। इसलिए बुरे कामों को छोडकऱ अपनी आत्मा के लिए अच्छे कार्य करें, ताकि आत्मा से मलिनता दूर हो। भौतिकवाद में मनुष्य व्रत नियम लेना ही नहीं चाहता। व्रत नियम से मर्यादा रहती है। उदाहरण देते हुए कहा कि घर में झाड़ू लगाने से घर का कचरा बाहर निकल जाता है वैसे ही अपनी आत्मा में ज्ञान के झाड़ू लगाएंगे तो पाप का सारा कचरा बाहर निकल जाएगा, जो मनुष्य धर्म मार्ग में बढ़ रहा है। उतना ही उसका स्वभाव निर्मल करुणामय व शांत होगा, ङ्क्षचतन करता है उसका वैसे आचरण बन जाता है। मुनि प्रसिद्ध सागर ने कहा कि जिसकी उत्पत्ति हुई है। वह एक दिन निश्चित नष्ट होगा। मनुष्य जीवन भी सदैव रहने वाला नहीं है।
जीवन के लिए
अध्यात्म आवश्यक
देई. जैन नसिया मंदिर में प्रवचनो में मुनि नाभिनंदी ने कहा मनुष्य को आध्यात्मिकता का जीवन जीना चाहिए। आध्यात्मिकता हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैन मुनि ने कहा कि आध्यात्मिकता व्यक्ति को आंतरिक शांति और संतुष्टि प्रदान करती है, जिससे वह जीवन की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होता है।
आध्यात्मिकता व्यक्ति को जीवन का उद्देश्य और अर्थ समझने में मदद करती है, जिससे वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित होता है। आध्यात्मिकता व्यक्ति को नैतिकता और मूल्यों के महत्व को समझने में मदद करती है, जिससे वह अपने जीवन में उनका पालन कर सकता है। आध्यात्मिकता व्यक्ति को तनाव और ङ्क्षचता से मुक्ति दिलाने में मदद
करती है।
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