सख्त आदेश, सख्त कार्यवाही: 15 जुलाई डेडलाइन
शासन की ओर से जारी निर्देश में कहा गया है कि जिन विद्यालयों के पास विभागीय मान्यता नहीं है, वे अवैध रूप से संचालन कर रहे हैं। ऐसे में यह न केवल शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, बल्कि बच्चों के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ है। निदेशक ने निर्देशित किया है कि 15 जुलाई तक इन स्कूलों को बंद कराने की संपूर्ण रिपोर्ट एक निर्धारित प्रारूप में शासन को भेजी जाए। इस प्रारूप में निम्न विवरण अनिवार्य रूप से मांगे गए हैं: - स्कूल का नाम और पता
- नोटिस निर्गत करने की तिथि
- स्कूल बंद कराने की तिथि
- प्राथमिकी (FIR) की प्रति
- लगाए गए जुर्माने का विवरण
प्रभावशाली लोगों का संरक्षण बना बड़ी चुनौती
जिले में सैकड़ों की संख्या में ऐसे प्राथमिक और जूनियर स्कूल मौजूद हैं जो शिक्षा विभाग की अनुमति के बिना ही संचालित हो रहे हैं। इनमें अधिकांश स्कूल ग्रामीण इलाकों में, एक या दो कमरों में, बिना खेलकूद के मैदान, पुस्तकालय, या पर्याप्त शिक्षकों के संचालन हो रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इन स्कूलों के संचालकों में कई स्थानीय प्रभावशाली व्यक्ति शामिल हैं, जो राजनीतिक या सामाजिक रसूख के बल पर कार्रवाई से अब तक बचते रहे हैं। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि “जब भी उच्चाधिकारियों को शिकायत मिलती है, संबंधित स्कूल पर कागजी खानापूर्ति की जाती है। स्कूल को नोटिस देकर कुछ दिन बंद दिखाया जाता है और फिर दोबारा संचालन शुरू हो जाता है।”
अब खेल खत्म: बीएसए और बीईओ को मैदान में उतरने के निर्देश
शासन ने अब इन स्कूलों पर आंख मूंद लेने वाले रवैये को पूरी तरह खत्म करने के निर्देश दिए हैं। शिक्षा निदेशक की ओर से स्पष्ट किया गया है कि बीएसए (जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी) और बीईओ (खंड शिक्षा अधिकारी) को खुद विद्यालयों की जांच करनी होगी। इसके लिए अभियान चलाकर एक-एक विद्यालय का सत्यापन होगा। बीएसए बाराबंकी ने बताया कि उन्होंने जिले के सभी बीईओ को निर्देश दे दिए हैं कि वे अपने-अपने विकास खंडों में संचालित निजी प्राथमिक और जूनियर स्कूलों की सूची तैयार करें और उनकी मान्यता की स्थिति का सत्यापन करें।
बच्चों का भविष्य अधर में, पेरेंट्स भी असमंजस में
इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता भी परेशान हैं। कई अभिभावकों ने बताया कि वे आर्थिक रूप से कमजोर हैं और दूर के मान्यता प्राप्त स्कूलों तक बच्चों को भेजना उनके लिए संभव नहीं। ऐसे में स्थानीय छोटे प्राइवेट स्कूल उनके लिए सहारा बनते हैं। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि यह सहूलियत अस्थायी है। शिक्षा के स्तर, परीक्षा मान्यता, और बच्चों के भविष्य की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि केवल वैध और गुणवत्ता युक्त विद्यालयों में ही पढ़ाई हो।
शिक्षा के साथ मजाक बन गया है व्यापार
इन अवैध स्कूलों ने शिक्षा को एक धंधा बना दिया है। शुल्क वसूली के नाम पर मासिक, अर्धवार्षिक और वार्षिक आधार पर हजारों रुपये लिए जाते हैं, जबकि शिक्षक प्रशिक्षित नहीं होते। कहीं कोई नियमानुसार पाठ्यक्रम नहीं चलता, न ही छात्रों का समुचित मूल्यांकन किया जाता है। शिक्षा विशेषज्ञ डॉ. आर.के. मिश्रा का कहना है: “बिना मान्यता स्कूलों पर कठोर कार्रवाई न केवल जरूरी है, बल्कि यह नैतिक जिम्मेदारी भी है। यदि कोई बच्चा ऐसे स्कूल से पढ़ाई करता है, तो आगे उसे प्रमाणपत्र मान्यता नहीं मिलेगी। यह पूरी पीढ़ी को संकट में डालने जैसा है।”
नोटिस, FIR और जुर्माना भी होगा
इस बार शासन ने सिर्फ निर्देश तक सीमित नहीं रहते हुए कानूनी कार्रवाई को भी जोड़ा है। बीएसए को आदेश दिया गया है कि ऐसे स्कूलों के खिलाफ केवल नोटिस ही नहीं, जरूरत पड़ने पर एफआईआर दर्ज कराई जाए और आर्थिक जुर्माना भी लगाया जाए। यदि स्कूल संचालन के दौरान बच्चों की सुरक्षा, आगजनी या भवन गिरने जैसी घटनाएं होती हैं, तो पूर्ण जिम्मेदारी संचालक की मानी जाएगी।
गांवों और कस्बों में सर्वाधिक मामले
बाराबंकी के हैदरगढ़, रामनगर, सिद्धौर, दरियाबाद और फतेहपुर ब्लॉक ऐसे क्षेत्र हैं जहां मान्यता विहीन स्कूलों की संख्या सर्वाधिक है। अधिकतर स्कूल छोटे कस्बों और गांवों में खुल गए हैं जहां लोग जानकारी के अभाव में इन्हें सरकारी मान्यता प्राप्त स्कूल समझ बैठते हैं।
शासन की मंशा साफ: शिक्षा की गुणवत्ता ही सर्वोपरि
राज्य सरकार का यह अभियान शिक्षा क्षेत्र में मानक और पारदर्शिता को सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। लंबे समय से चली आ रही अनियमितताओं और खानापूर्ति वाले रवैये पर अब लगाम लगाने की तैयारी है।
कार्रवाई नहीं हुई तो फेल हो जाएगा मिशन शिक्षा
बिना मान्यता वाले स्कूल बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हैं। अब समय आ गया है कि प्रशासन इस पर मजबूती से कार्रवाई करे। यदि 15 जुलाई तक वांछित कार्रवाई नहीं हुई, तो शासन की सख्ती के चलते संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाएगी। शिक्षा के क्षेत्र में पारदर्शिता और गुणवत्ता लाने के लिए यह कार्रवाई एक मील का पत्थर साबित हो सकती है अगर इसे सही रूप में लागू किया जाए।